बजट के बाद जब यह अपेक्षा की जा रही थी कि संसद में राष्ट्रीय महत्व के प्रश्नों पर कोई धीर-गंभीर चर्चा होगी तब ऐसा कुछ नहीं हुआ। गत दिवस लोकसभा में नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए को लेकर हंगामा होता रहा तो राज्यसभा में इसी कानून को लेकर इतना शोर-शराबा हुआ कि वहां कोई कामकाज ही नहीं हो सका। राज्यसभा की कार्यवाही दिन भर के लिए इसलिए स्थगित करनी पड़ी, क्योंकि विपक्ष ने राष्ट्रपति के धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा करने के बजाय दूसरे विषयों पर बहस की जिद पकड़ ली।

राज्यसभा में विपक्ष का यह व्यवहार नया नहीं है। उसके इसी व्यवहार के कारण यह धारणा पुष्ट होती जा रही है कि अब लोकसभा से ज्यादा हंगामा राज्यसभा में होता है। इससे इन्कार नहीं कि सीएए पर विपक्ष को गहरी आपत्ति है, लेकिन इसमें संदेह है कि वह अपनी आपत्ति दर्ज कराने को लेकर गंभीर है। इसका प्रमाण यह है कि वह सीएए के साथ ही राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर यानी एनपीआर पर भी आपत्तियां दर्ज करा रहा है। वह ऐसा तब कर रहा है जब दस साल पहले एनपीआर की कवायद की जा चुकी है। आखिर जो काम पहले भी हो चुका है उसे लेकर सवाल खड़े करने का क्या मतलब?

विपक्ष के रवैये से यह साफ है कि उसका मकसद हंगामा खड़ा करना ही है। इसीलिए उसकी ओर से हर संभव तरीके से दुष्प्रचार का सहारा लिया जा रहा है। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैैं कि ऐसा इसीलिए किया जा रहा है ताकि शाहीन बाग जैसे धरनों को खाद-पानी मिलता रहे। राजधानी दिल्ली में यह धरना एक ऐसी सड़क पर कब्जा करके दिया जा रहा है जिसके बाधित होने से लाखों लोगों को परेशानी हो रही है। विपक्ष इससे परिचित है, लेकिन पता नहीं क्यों वह आम जनता की इस परेशानी में ही अपनी जीत देख रहा है? यह विचित्र है कि विपक्षी दल एक ओर यह चाह रहे हैैं कि संसद में सीएए पर फिर बहस हो और दूसरी ओर उनकी ओर से इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी गई है।

क्या यह उचित नहीं होगा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रतीक्षा की जाए? आखिर जो मसला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विचाराधीन है उस पर संसद में बहस करने का क्या मतलब? यह भी ध्यान रहे कि सीएए के खिलाफ एक बड़ी संख्या में याचिकाएं विपक्षी दलों की ओर से ही दायर की गई हैैं। बेहतर हो कि विपक्ष इस पर गौर करे कि सीएए पर उसने जैसा नकारात्मक रवैया अपना लिया है वह केवल लोगों को भ्रमित करने वाला ही नहीं, बल्कि शासन करने के अधिकार को बाधित करने वाला भी है।