महाराष्ट्र के मराठा समुदाय के संगठन-मराठा क्रांति मोर्चा की ओर से मुंबई और आसपास के शहरों में बुलाए गए बंद के दौरान जिस तरह हिंसा का प्रदर्शन किया गया उससे यही पता चलता है कि आरक्षण के नाम पर अराजकता फैलाने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। अपने समुदाय के लिए आरक्षण मांग रहे मराठा नेता भली तरह यह जान रहे थे कि उनका आंदोलन हिंसक होता जा रहा है, लेकिन वे तब चेते जब उनके समर्थकों की हिंसा बेकाबू हो गई। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि आरक्षण मांगने निकले मराठा क्रांति मोर्चा ने बंद की अपील वापस ले ली, क्योंकि जब तक उसने ऐसा किया तब तक मुंबई के साथ-साथ अन्य शहरों में बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ और आगजनी हो चुकी थी। इससे लाखों लोग प्रभावित हुए और सरकारी एवं गैर सरकारी संपत्ति को क्षति भी पहुंची।

रेल एवं सड़क मार्ग ठपकर वाहनों में तोड़फोड़ करना और पुलिस को निशाना बनाना अराजकता के अलावा और कुछ नहीं। आरक्षण के इस आंदोलन में जैसा उत्पात देखने को मिला वैसा ही कुछ इसी तरह के अन्य आंदोलनों में भी देखने को मिल चुका है। आखिर कौन भूल सकता है उस हिंसा को जो जाट, पाटीदार, गुर्जर और कापू समुदाय के आरक्षण आंदोलन के दौरान विभिन्न राज्यों में देखने को मिली? भले ही आरक्षण मांगने सड़कों पर उतरे संगठन अपनी गतिविधि को आंदोलन का नाम देते हों, लेकिन सच यह है कि इसके बहाने वे अराजकता फैलाकर सरकार पर अनुचित दबाव डालते हैैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि अन्य राजनीतिक दल ऐसे आंदोलनों को हवा देते हैं।

यह लगभग तय है कि जैसे-जैसे चुनाव करीब आते जाएंगे वैसे-वैसे आरक्षण एवं अन्य मांगों को लेकर सड़कों पर हिंसक तरीके से उतरने वाले संगठनों की संख्या बढ़ती जाएगी। इसमें कोई संशय नहीं कि महाराष्ट्र में प्रभावशाली माने जाने वाले मराठा समुदाय को उकसाने का काम विभिन्न राजनीतिक दल कर रहे हैैं। पहले राजनीतिक दल वोटों के लालच में हर किसी की आरक्षण की मांग का समर्थन करने आगे आ जाते थे, लेकिन अब वे इसलिए भी आगे आ जाते हैैं ताकि सत्तारूढ़ दल को मुश्किल में डाला जा सके। दरअसल इसीलिए आरक्षण मांगने वाले हिंसक का सहारा लेने में संकोच नहीं करते।

आरक्षण मांग रहे समुदाय ही नहीं, उन्हें समर्थन देने वाले दल भी इस सच्चाई से अच्छी तरह परिचित हैैं कि हर तबके को आरक्षण नहीं मिल सकता और वह उनकी सभी समस्याओं का समाधान नहीं, लेकिन वे इस सच को रेखांकित करने को तैयार नहीं। कई बार तो वे नियम-कानून और यहां तक कि अदालती आदेशों के खिलाफ जाकर भी आरक्षण की पैरवी करने लगते हैैं।

मराठा समुदाय एक तो आरक्षण के दायरे में आने की पात्रता नहीं रखता और दूसरे अदालती आदेश के तहत जब तक पिछड़ा वर्ग आयोग इस समुदाय की आर्थिक-सामाजिक स्थिति पर अपनी रपट नहीं दे देता तब तक महाराष्ट्र सरकार चाहकर भी किसी फैसले पर नहीं पहुंच सकती। इसके बावजूद मराठा क्रांति मोर्चा इस जिद पर अड़ा है कि राज्य सरकार अध्यादेश के जरिये उनके समुदाय के लिए आरक्षण की घोषणा करे-और वह भी 16 प्रतिशत। यह जोर-जबरदस्ती के अलावा और कुछ नहीं।