त्रिपुरा, नगालैैंड और मेघालय के चुनाव नतीजों के साथ केवल भाजपा का विजय रथ और तेजी के साथ आगे बढ़ता हुआ ही नहीं दिख रहा है, बल्कि पूर्वोत्तर राष्ट्रीय विमर्श के केंद्र में भी आता नजर आ रहा है। इसके लिए एक बड़ी हद तक श्रेय भाजपा को ही जाता है। उसने राजनीतिक तौर पर अलग-थलग से पूर्वोत्तर को राष्ट्रीय राजनीति की मुख्यधारा में लाने का काम किया। अगर भाजपा त्रिपुरा में प्रबल जीत के साथ नगालैैंड में प्रभावशाली प्रदर्शन करने और मेघालय मे उल्लेखनीय उपस्थिति दर्ज कराने में सफल रही तो यह केवल जोरदार चुनाव प्रचार का नतीजा नहीं है। यह पूर्वोत्तर के राज्यों में विशेष ध्यान देने की उसकी रणनीति का भी परिणाम है। उसने इस रणनीति पर 2014 में लोकसभा चुनाव जीतने के साथ ही अमल शुरू कर दिया था।

असम में चुनाव जीतने के साथ उसने इस रणनीति को और धार दी। राजनीतिक तौर पर सक्रियता दिखाने के साथ ही केंद्र सरकार ने जिस तरह पूर्वोत्तर को अपनी एक्ट ईस्ट एशिया नीति की धुरी बनाया उससे उसने इस इलाके के लोगों को यह भरोसा भी दिलाया कि वह उनके आर्थिक उत्थान के प्रति भी सजग-सचेत है। वाम दलों के मजबूत गढ़ त्रिपुरा में बाजी पलटने जा रही है, यह उसी समय स्पष्ट हो गया था जब मुख्यमंत्री माणिक सरकार ने यह स्वीकार कर लिया था कि उनका मुख्य मुकाबला भाजपा से ही है। इसी तरह नगालैैंड की हवा का रुख भी तब साफ हो गया था जब वहां के प्रमुख क्षेत्रीय दल भाजपा से हाथ मिलाने को आतुर थे। नि:संदेह मेघालय में भाजपा उम्मीद से पीछे रह गई, लेकिन यह सामान्य बात नहीं कि यहां भी कांग्रेस के लिए सत्ता हासिल करना आसान नहीं।

त्रिपुरा में भाजपा के सत्ता में आने का रास्ता साफ होने के साथ ऐसे राज्यों की संख्या 20 होने जा रही है जहां भाजपा अथवा सहयोगी दलों की सरकारें हैैं। भाजपा के मुकाबले राष्ट्रीय हैसियत वाली कांग्रेस तीन-चार राज्यों तक सिमटती दिख रही है तो एक समय राष्ट्रीय राजनीति में असर रखने वाले वाम दल केवल केरल तक सिमट गए हैैं। पश्चिम बंगाल के बाद उन्होंने अपने एक और गढ़ त्रिपुरा को खो दिया। इसके लिए वे अपने अलावा अन्य किसी को दोष नहीं दे सकते। चुनाव नतीजे यह बता रहे हैैं कि त्रिपुरा के लोग एक विकल्प की तलाश में थे और वह उन्हें कांग्रेस में नहीं उस भाजपा में नजर आया जिसने पिछले विधानसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीती थी। इसी कारण त्रिपुरा में भाजपा की जीत कहीं अधिक प्रभावशाली है।

ऐसी चुनावी सफलता के दूसरे उदाहरण मिलना मुश्किल हैैं। जहां त्रिपुरा में भाजपा की सफलता अकल्पनीय है वहीं वाम दलों और कांग्रेस की पराजय एक ऐसा आघात है जिसके असर को अन्य विपक्षी दल भी महसूस करेंगे। नि:संदेह भाजपा ने त्रिपुरा और नगालैैंड फतह करके आगामी विधानसभा चुनावों के साथ-साथ आम चुनावों के लिए भी वह जरूरी ऊर्जा हासिल कर ली है जो विपक्षी दलों के लिए चुनौती बनेगी, लेकिन अब जब भाजपा का विजय रथ और आगे बढ़ चला है तब उसे लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की चुनौती पूरी करने पर और ध्यान देना चाहिए।

[ मुख्य संपादकीय ]