प्रदेश में एक बार फिर बिजली की दरें बढ़ाने की तैयारी है। उपभोक्ताओं को समुचित सुविधाएं दिए बिना ऐसा कदम उठाए जाने से सवाल खड़े होना लाजिमी है।

प्रदेश में एक बार फिर बिजली की दरें महंगी करने की तैयारी है। नए वित्तीय वर्ष, यानी अप्रैल से बिजली महंगी हो जाएगी। बिजली की दरों में 21.15 प्रतिशत तक वृद्धि करने का प्रस्ताव दिया गया है। इसमें बिजली की बढ़ती खपत और इससे होने वाले नुकसान का हवाला दिया गया है। हर वर्ष बिजली की दरों में इजाफा किया जा रहा है लेकिन निगम उपभोक्ताओं को नियमित विद्युत आपूर्ति करने में नाकाम रहा है। जिस प्रकार से इस बार भी दरों को बढ़ाने का प्रस्ताव दिया गया है, उससे ऐसा लगता है कि ऊर्जा निगमों को अपनी नुकसान की भरपाई के लिए केवल उपभोक्ता ही नजर आता है।

सवाल यह कि आखिर उपभोक्ता की जेब से ही यह नुकसान क्यों भरा जाए। लाइन लॉस से होने वाले नुकसान को रोकने में ऊर्जा निगम नाकामयाब रहा है। बिजली चोरी पर अभी तक कोई अंकुश नहीं लग पाया है। यहां तक कि प्रदेश में 24 घंटे बिजली देने का दावा अभी तक धरातल पर नहीं उतर पाया है। मौसम कोई भी हो, बिजली गुल होना आम बात है। इसका कारण लोकल फॉल्ट को बताया जाता है। कहा जाता है कि बिजली आपूर्ति पूरी है लेकिन स्थानीय स्तर पर कोई तकनीकी खराबी होने के कारण इसकी उपभोक्ताओं तक आपूर्ति नहीं हो पा रही है। इसकी आड़ में विभाग भी अपना पल्ला झाड़ लेता है।

आलम यह है कि तेज हवाएं चली नहीं कि बिजली गायब होने में समय नहीं लगता। इससे साफ है कि ऊर्जा महकमे में कई ढांचागत खामियां हैं। इन्हें दूर करने के लिए विभाग के स्तर से ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। बिजली की तारों को अंडरग्राउंड करने की बात वर्षों से की जाती रही है। बावजूद इसके इस मामले में कोई बहुत अधिक कार्य नहीं हुआ है। इन सबके बीच बिजली की दरों में बढ़ोतरी निश्चित तौर पर उपभोक्ताओं को आक्रोशित कर रही है।

बहरहाल, बिजली की दरों को बढ़ाने के संबंध में इन दिनों नियामक आयोग में सुनवाई चल रही है और आयोग ने भी यह माना है कि बिजली की दर बढ़ाने के स्थान पर व्यवस्थाओं को सुधारने की जरूरत है। बिजली कर्मियों को मुफ्त बिजली देने पर भी आयोग ने सवाल खड़े किए हैं। आयोग की यह रवैया निश्चित रूप से उपभोक्ताओं के लिए राहत भरा है। हालांकि, अब देखना यह है कि आयोग अंत में निर्णय क्या लेता है।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड ]