उत्तर प्रदेश सरकार अब यूपी इन्वेस्टर्स समिट के दौरान हुए मैमोरंडम आफ अंडरस्टेंडिंग यानि समझौता ज्ञापनों (एमओयू) का सत्यापन कराने जा रही है। इस प्रक्रिया के दौरान निवेश का दावा करने वाली हर कंपनी का टर्नओवर तो देखा ही जाएगा, उसकी लाइन आफ बिजनेस की भी परख होगी। देखा जाएगा कि जिस परियोजना के लिए एमओयू हुआ है, उसे पूरा करने की कुव्वत भी उसमें है या नहीं। यानि प्रोजेक्ट के लिए धनराशि कैसे जुटेगी, इसका भी पता लगाना है। निवेशक सरकार से क्या छूट या सुविधा चाहते हैं? प्रदेश में निवेश के लिए 1074 एमओयू हुए हैं, जिनकी लागत 4.68 लाख करोड़ बनती है। सत्यापन प्रक्रिया के दौरान ही सरकार जानेगी कि निवेशक किस जिले में और कहां अपना प्रोजेक्ट स्थापित करना चाहता है। कितने प्रोजेक्ट व्यावहारिक हैं। क्या उसके पास इसके लिए भूमि है? अगर नहीं है तो उसकी व्यवस्था वह खुद करेंगे अथवा सरकार से सहयोग मांगेगे।

यह सब हाल में पीएनबी के जरिये लगे आर्थिक झटके के मद्देनजर किया जा रहा है। सरकार यह भी देखेगी कि कोई निवेशक कर्ज चुकाने में कहीं डिफाल्टर तो नहीं है? कहीं वह ब्लैक लिस्ट तो नहीं है? क्या किसी ने अपना कर्ज एनपीए की श्रेणी तक तो नहीं पहुंचा दिया है? सरकार की दो चिंताएं जाहिर हो रही हैं, पहला तो जो एमओयू साइन हुए हैं, उन्हें अमलीजामा पहनाया जाए। दूसरे, कोई ऐसा निवेशक न आ जाए जो बैंकों का चूना लगा कर अब सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना पर पलीता न लगा दे। यानि कि एक तरफ तो जो निवेशक है उसे किसी तरह की परेशानी न हो और उसका काम समय पर या उससे पहले व्यवहार में आ जाए, लेकिन कोई ऐसा निवेशक सरकार से रियायत न पा जाए जो पहले से ही वांछित की श्रेणी में आता हो। बड़े निवेशकों से तो सरकार ने बातचीत का सिलसिला भी शुरू कर दिया है। पहली बार बड़े पैमाने पर औद्योगिक क्षेत्र में निवेश होने की उम्मीद जगी है। एक वातावरण बना है और सरकार इसका लाभ प्रदेश की जनता को दिलाना चाहती है।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश ]