असुरक्षित बेटियां
बेटियों पर जो बीत रही है वह भयावह है। इसे रोकने के लिए सरकार, प्रशासन, समाज और अभिभावकों को आवश्यक कदम उठाने होंगे।
बेटियों पर जो बीत रही है वह भयावह है। इसे रोकने के लिए सरकार, प्रशासन, समाज और अभिभावकों को आवश्यक कदम उठाने होंगे।
बेटा-बेटी एक समान, नन्हीं छांव..., म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं के..., बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, जैसी बेटियों को समर्पित, समर्थित लाइनें वर्तमान में घट रही घटनाओं के परिदृश्य में महज जुमलेबाजी ही प्रतीत हो रही हैं। बेटियों पर जो बीत रही है वह इन लाइनों से इतर भयावह है। चंडीगढ़ में एक दस वर्ष की बच्ची दुष्कर्म का शिकार होती है और गर्भवती हो जाती है। जब तक इसका पता चलता है तब तक गर्भपात नामुमकिन हो जाता है। मामला कोर्ट में पहुंचता है और आखिरकार बच्ची को मां बनना पड़ता है। इस घटना से बुरी तरह सिहरा मन-मस्तिष्क अभी ठीक से सामान्य भी नहीं हो सका था कि अब बठिंडा में एक 15 वर्षीय किशोरी के गर्भवती होने की खबर सामने आ गई। इससे पूर्व जालंधर व लुधियाना में भी बच्चियों के साथ ऐसी ही घटनाएं सामने आ चुकी हैं। निस्संदेह समाज की यह तस्वीर बेहद भयावह है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? यह विकृति आखिर दिनोंदिन क्यों बढ़ती जा रही है? यदि इन सवालों के जवाब तलाशे जाएं तो कई ऐसे ठोस कारण मिल जाएंगे, जिन्हें खारिज करना संभव नहीं होगा। बेशक इसके लिए विकृत मानसिकता सबसे बड़ा कारण है, लेकिन इसके साथ ही हर हाथ में मोबाइल की पहुंच, इंटरनेट की लत और इन पर आसानी से उपलब्ध अश्लील सामग्री को भी कम जिम्मेदार नहीं माना जा सकता है। यही नहीं बच्चों के प्रति अभिभावकों की उदासीनता और उन्हें पर्याप्त समय न दे पाना भी एक बड़ा कारण है, जो ऐसे अपराधों को सिर उठाने का अवसर देता है। निस्संदेह बच्चियों का जीवन बर्बाद करने वालों के प्रति किसी प्रकार के रहम की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। सरकार और प्रशासन को भी इंटरनेट सेवाओं पर कड़ी नजर रखनी चाहिए और अश्लीलता परोसने वाली सामग्र्री को कड़ाई के साथ प्रतिबंधित करना चाहिए। इसके साथ ही समाज को भी अपने अंदर झांकना होगा। सारी जिम्मेदारी सिर्फ सरकार या फिर प्रशासन की ही नहीं होती बल्कि बच्चों के भविष्य को लेकर अभिभावकों को भी अपने फर्ज का इमानदारी से निर्वहन करना होगा। अभिभावकों को भी चाहिए कि वे बच्चों को पूरा समय दें और उन्हें अच्छे-बुरे की पहचान कराएं, उनपर नजर रखें। चौतरफा प्रयासों से ही ऐसे अपराध और विकृतियों को पनपने से रोकने में सफलता की उम्मीद की जा सकती है।
[ स्थानीय संपादकीय: पंजाब ]