महिला दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट अलग-अलग क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाली महिलाओं को सौंपकर जो पहल की वह इसलिए अनूठी है कि उससे देश-दुनिया केवल इन महिलाओं के प्रेरक कार्यों से ही परिचित नहीं हुई, बल्कि अन्य लाखों-करोड़ों महिलाओं को कुछ ऐसा ही करने की प्रेरणा मिली। प्रधानमंत्री ने जिन महिलाओं को अपने सोशल मीडिया अकाउंट सौंपे वे आम महिलाएं हैं, लेकिन उनकी उपलब्धियां यह बताने वाली हैं कि किस तरह महिलाएं अलग-अलग क्षेत्रों में ऐसे कार्य कर सकती हैं जो उनके साथ-साथ अन्य लोगों के जीवन को बेहतर बना सकते हैं।

नि:संदेह प्रधानमंत्री की यह पहल प्रतीकात्मक है और दिन विशेष तक सीमित है, लेकिन यह कहीं न कहीं इस आवश्यकता को रेखांकित करती है कि महिलाओं के प्रति दृष्किोण बदलने की जरूरत है। इस जरूरत की पूर्ति महिला दिवस अथवा अन्य किसी विशेष अवसर पर ही नहीं, बल्कि हर समय होनी चाहिए। इससे ही महिलाओं को आगे बढ़ने, अपनी क्षमता का पूरी तरह इस्तेमाल करने और साथ ही समाज और देश के लिए कुछ बेहतर करने की प्रेरणा मिलेगी। आज यदि किसी चीज की सबसे अधिक आवश्यकता है तो वह इसी की है कि पुरुष प्रधान समाज महिलाओं के प्रति अपना नजरिया बदले।

निश्चित रूप से बीते कुछ दशकों में महिलाओं ने बहुत कुछ अर्जित किया है और पहले की तुलना में वर्तमान में समाज में उनकी महत्ता स्थापित हुई है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है। जब महिलाएं जीवन के हर क्षेत्र में दूसरों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ेंगी और अपनी अपेक्षाओं-आकांक्षाओं को पूरा करने में समर्थ होंगी तो एक बेहतर समाज का निर्माण कहीं अधिक आसानी से हो सकता है। उचित यह होगा कि पुरुष प्रधान समाज इस सोच को बल प्रदान करे कि आज के इस युग में महिलाएं वह सब कुछ कर सकती हैं जो पुरुष करते हैं अथवा उनके अधिकार क्षेत्र वाले कार्य माने जाते हैं। 

इसका बढ़िया उदाहरण हैं वे सभी महिलाएं जिन्हें प्रधानमंत्री ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट सौंपे। इन सभी ने यही प्रदर्शित किया है कि संकल्प शक्ति के माध्यम से हर तरह की कठिन चुनौतियों का सामना करते हुए घर-परिवार के साथ-साथ समाज और राष्ट्र को बेहतर बनाया जा सकता है। एक ऐसे समय की कल्पना की जानी चाहिए कि जैसी सामर्थ्य एवं संकल्पशक्ति इन महिलाओं ने प्रदर्शित की वैसी ही अन्य महिलाएं कर सकें। इसके लिए सांस्कृतिक बदलाव लाने की जिम्मेदारी पुरुष प्रधान समाज को अपने कंधों पर लेनी होगी। इस जिम्मेदारी का निर्वाह राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किया जाना चाहिए, क्योंकि चाहे भारत हो अथवा अमेरिका-ज्यादातर देश किसी न किसी स्तर पर अभी भी पुरुष प्रधान समाज ही हैं।