प्रदेश के व्यवासायिक वाहन चला रहे वाहन चालकों की नजरें वाहन चलाने योग्य न पाए जाना चिंताजनक है। यदि वाहन चालक सही प्रकार से रास्ता नहीं देख पाएगा तो इससे दुर्घटना की आशंका निश्चित रूप से बनी रहेगी। राजधानी देहरादून में संभागीय परिवहन विभाग के नेत्र परीक्षण में सामने आई यह हकीकत सड़कों पर बढ़ रही दुर्घटनाओं का कारण बताने के लिए काफी है। विभाग की ओर से किए गए नेत्र परीक्षण में 60 फीसद चालकों की नजरें बेहद कमजोर पाई गई हैं। यानी ये चालक वाहन चलाने के लिए फिट ही नही हैं। यदि अन्य जिलों में भी वाहन चालकों का ऐसा ही हाल है तो दुर्घटनाओं के बढ़ते ग्राफ पर आश्चर्य नहीं किया जाना चाहिए। प्रदेश सरकार व परिवहन महकमा बीते कुछ वर्षो से सड़क सुरक्षा को लेकर तमाम योजनाएं बना रहा है। इसमें डेंजर प्वाइंट चिह्नित करने के साथ ही ब्लैक स्पॉट दुरुस्त करना तक शामिल है। परिवहन विभाग ने पर्वतीय क्षेत्रों में वाहनों की रफ्तार पर ब्रेक लगाने के लिए स्पीड गवर्नर तक लगाना अनिवार्य कर दिया है। दुर्घटना के यूं तक कई कारण सामने आए हैं लेकिन मानवीय चूक व लापरवाही इसमें पहले नंबर पर है। जाहिर है कि यदि चालक सावधानी से वाहन चलाएं तो दुर्घटना की आशंका काफी घट सकती है।

ऐसी परिस्थतियों में वाहन चालकों का शारीरिक रूप से फिट होना अनिवार्य है। ऐसा पहली बार नहीं है जब वाहन चालक विभाग के इस परीक्षण में फेल हुए हैं। बीते वर्ष राज्य परिवहन निगम के चालकों की नजरें कमजोर पाई गई थी। यह बात और भी गंभीर इसलिए थी क्योंकि प्रदेश के अधिकांश यात्री इन्हीं बसों में सफर करते हैं। जाहिर है कि यात्रियों की जान इन्हीं चालकों के हाथ में होती है। यह सीधे-सीधे यात्रियों की जान से खिलवाड़ है। यह बात सामने आने के बावजूद भी चालकों की फिटनेस के संबंध में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। यह स्थिति तो सरकारी वाहन चालकों की थी। अब निजी व्यावसायिक वाहन चालक भी इस जद में आ रहे हैं। प्रदेश सरकार के साथ ही महकमे को इस स्थिति की गंभीरता को समझना चाहिए। सरकार को चाहिए कि व्यावसायिक वाहन चालकों का नियमित रूप से फिटनेस टेस्ट लिया जाए। जब तक ये फिटनहीं होते, तब तक इन्हें वाहन चलाने से रोका जाए। परीक्षण के लिए किसी सप्ताह विशेष की जरूरत नहीं बल्कि इसे एक नियमित प्रक्रिया बनाया जाना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड ]