केंद्र और राज्य सरकार द्वारा तमाम प्रयास करने के बावजूद राज्य में नक्सल हिंसा पर विराम नहीं लग पा रहा। सुरक्षाबलों का दबाव बढऩे पर नक्सली कुछ दिन के लिए शांत हो जाते हैं लेकिन मौका मिलते ही वे अपने कारनामों को फिर अंजाम देने लगते हैं। नक्सल हिंसा का सर्वाधिक कुप्रभाव राज्य के विकास कार्यों और औद्योगिक निवेश पर पड़ रहा है। नक्सली, कारोबारियों और निवेशकों से लेवी वसूलते हैं। मांग के अनुरूप न मिलने पर कारोबारियों के उपकरण, निर्माण सामग्री और अन्य संपत्ति का नुकसान करते हैं। कई बार नक्सली अतिवादी कदम उठा लेते हैं और खून-खराबा पर उतारू हो जाते हैं। इन हालात में बड़े पूंजी निवेशकों ने बिहार से दूरी बना रखी है। नक्सल आतंक की वजह से बड़ी निर्माण कंपनियां भी राज्य में काम करने में नाक-भौं सिकोड़ती हैं। ऐसा नहीं कि केंद्र और राज्य सरकारें हाथ पर हाथ रखकर बैठी हैं। नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षाबल जोरदार अभियान चला रहे हैं जिनमें बड़ी संख्या में नक्सली मारे और पकड़े जा चुके हैं यद्यपि इसके बावजूद नक्सल हिंसा की घटनाएं जारी हैं। दरअसल, नक्सलियों को विभिन्न कारणों से सामाजिक समर्थन मिलना बंद नहीं हो रहा। यह बड़ी प्रशासनिक विफलता है। सुरक्षाबलों का दबाव बढऩे पर नक्सलियों को उनके समर्थक गांवों में शरण मिल जाती है। इस वजह से सुरक्षाबल तमाम प्रयास के बावजूद नक्सलियों का समूल सफाया नहीं कर पा रहे। वास्तव में नक्सल समस्या को सिर्फ सामाजिक या सिर्फ आपराधिक समस्या समझने से काम नहीं चलेगा। इसमें दो राय नहीं कि नक्सली खुलकर देशविरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं। इसके बावजूद इस समस्या के सामाजिक पहलू नजरअंदाज करके आगे नहीं बढ़ा जा सकता। शासन-प्रशासन को ऐसी रणनीति बनानी होगी ताकि नक्सलियों को ग्रामीणों का समर्थन एवं सहयोग मिलना बंद हो जाए। इसी के साथ एंटी-नक्सल ऑपरेशन संचालित कर रहे सुरक्षाबलों को आधुनिक हथियारों और अन्य साधनों से लैस किया जाना चाहिए। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि नक्सलियों से निपटने में अद्र्धसैनिक बलों के तमाम जवान शहीद हो रहे हैं। जाहिर है कि नक्सलियों ने गृहयुद्ध जैसे हालात पैदा कर रखे हैं लिहाजा सरकार और सुरक्षाबलों को इनसे निपटने में वैसी ही मानसिकता रखनी होगी। बिहार के हित में आवश्यक है कि नक्सलवाद का जल्द से जल्द जड़ से सफाया कर दिया जाए।
....
नक्सली अपने ही मुल्क के भटके हुए लोग हैं जिनसे निपटने में अद्र्धसैन्य बलों के जवानों को शहादत देनी पड़ रही है। इसके बावजूद इनका सफाया नहीं हो पा रहा क्योंकि नक्सलियों को सीमित क्षेत्रों में ग्रामीणों का समर्थन प्राप्त है।

[ स्थानीय संपादकीय: बिहार ]