औरंगाबाद में नक्सलियों के साथ मुठभेड़ में एक और सीआरपीएफ जवान की शहादत चिंताजनक है। सैन्य और अर्धसैन्य बल देश के दुश्मनों का मुकाबला करने के लिए हैं। राष्ट्र के प्रति अपना दायित्व निभाते हुए सैनिक का शहीद हो जाना गर्व की बात है, पर अपने ही देश के भटके हुए लोगों से मुठभेड़ में जवानों की जिंदगी जाना बड़ी क्षति है। एक के बाद एक घटनाओं से प्रतीत होता है कि नक्सलियों के समूल सफाए की योजनाएं अपेक्षानुसार फलीभूत नहीं हो पा रहीं। नक्सली जिस तरह सुरक्षाबलों से आमने-सामने मुठभेड़ करते हंै, उससे नहीं लगता कि उनके मन में कोई खौफ है। इसी के साथ नक्सलियों द्वारा लेवी वसूली, आतंक फैलाने के लिए ङ्क्षहसा और आगजनी तथा मुखबिरों व निर्दोष व्यक्तियों की हत्या की वारदातें बदस्तूर जारी हैं। नक्सल आतंक की घटनाओं में उन्नीस-बीस गिरावट का कोई अर्थ नहीं है। राज्य के कई इलाकों में नक्सल आतंक का विस्तार देखते हुए बड़े ऑपरेशन की जरूरत है। नक्सलियों के पक्ष में यह अहम बात है कि उन्हें भय या प्रलोभनवश ग्रामीणों की हमदर्दी हासिल है। ग्रामीण न सिर्फ नक्सलियों के खाने-पीने का इंतजाम करते हैं बल्कि सुरक्षाबलों का दबाव बढऩे पर उन्हें छिपने के लिए आश्रय भी मुहैया कराते हैं। नक्सलियों के खिलाफ रणनीति की यह बड़ी विफलता है कि उनके प्रति ग्रामीणों की हमदर्दी खत्म नहीं की जा सकी है। शासन-प्रशासन और सुरक्षाबल ग्रामीणों को यह भरोसा दिलाने में विफल रहे हैं कि वे नक्सलियों से महफूज हैं। जाहिर है कि नक्सलियों के सफाए की कारगर रणनीति बनाने में व्यावहारिक पहलुओं पर और अधिक ध्यान देना होगा। जवानों की शहादत 'राष्ट्रीय क्षति' है। सैन्य और अद्र्धसैन्य संगठनों के जवान सिर्फ नौकरी नहीं करते। नौकरी में शहादत नहीं होती। ये जवान देश की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देते हैं। अधिसंख्य जवान अपने पीछे युवा पत्नी और छोटे बच्चे छोड़ जाते हैं। यह सरकार और समाज की जिम्मेदारी है कि शहीद के परिवार को भरपूर सम्मान के साथ सभी आवश्यक सुविधाएं भी मिलें। शहीदों के बच्चों की शिक्षा और रोजगार के लिए विशेष इंतजाम होने चाहिए। जवानों की शहादत अमूल्य है। इसके बदले उनके परिवार के लिए जो भी किया जाए, कम है।
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तमाम दावों के बावजूद नक्सल आतंक पर अंकुश न लग पाना बड़ी रणनीतिक विफलता है। केंद्र और राज्य सरकार को वे सभी 'सूराख' चिन्हित करने चाहिए जिनकी वजह से नक्सलियों के सफाए की योजनाएं फलीभूत नहीं हो पा रहीं।

[ स्थानीय संपादकीय: बिहार ]