राजस्थान के उदयपुर की तरह से महाराष्ट्र के अमरावती में भी नुपुर शर्मा के समर्थन में पोस्ट करने पर उमेश कोल्हे नामक व्यक्ति की हत्या का समाचार यही बता रहा है कि सिर तन से जुदा करने की सनक से लैस जिहादी सोच वाले बेलगाम और बेखौफ हो चुके हैं। इसका पता इससे भी चल रहा है कि देश के कुछ अन्य हिस्सों से ऐसी खबरें आ रही हैं कि जिहादी तत्व उन लोगों को उदयपुर के कन्हैयालाल तेली की तरह से हत्या करने की धमकियां दे रहे हैं, जो भाजपा की निलंबित प्रवक्ता नुपुर शर्मा के पक्ष में कुछ कह-लिख रहे हैं। उदयपुर और अमरावती की आतंकित करने वाली घटनाओं के पहले भी इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं।

कर्नाटक के शिवमोगा में हर्षा नामक युवक की हत्या महज इसलिए कर दी गई थी, क्योंकि उसने शिक्षा संस्थानों में हिजाब पहनने की जिद के जवाब में भगवा शाल की पैरवी की थी। इसी तरह अहमदाबाद में कथित ईशनिंदा के आरोप में किशन भरवाड़ को मार डाला गया था। किशन की हत्या के आरोप में पकड़े गए एक मौलवी के पास तो उन लोगों की एक सूची मिली थी, जिन्हें वह मारने की योजना बना रहा था। चूंकि हर्षा और किशन की हत्याएं नुपुर शर्मा प्रकरण के पहले हुई, इसलिए इस दलील का कोई मतलब नहीं कि उनकी विवादित टिप्पणी ने देश का माहौल खराब किया।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि गत दिवस सुप्रीम कोर्ट ने नुपुर शर्मा को फटकार लगाते समय कुछ ऐसा ही रेखांकित करने कोशिश की। सच तो यह है कि देश में जिहादी सोच वाले वैसे लोगों की संख्या बढ़ रही है जिन्होंने कन्हैयालाल, उमेश कोल्हे को मारा या फिर इसके पहले कमलेश तिवारी की हत्या की थी।यह ठीक है कि अमरावती मामले की भी जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंप दी गई, लेकिन आवश्यकता केवल इन हत्याओं के लिए जिम्मेदार जिहादियों को यथाशीघ्र सख्त सजा देने की नहीं, बल्कि उन कारणों की तह तक जाने की भी है, जिनके चलते मजहबी उन्माद बढ़ता जा रहा है। नि:संदेह मजहबी उन्माद इसलिए भी बढ़ रहा है, क्योंकि एक अर्से से संकीर्ण राजनीतिक कारणों से यह दुष्प्रचार करके माहौल को विषाक्तबनाया जा रहा है कि भारत में मुसलमानों को सताया-दबाया जा रहा है और वे डरे हुए हैं। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि अनेक मुस्लिम संगठनों ने कन्हैयालाल की बर्बर हत्या की निंदा की, क्योंकि इनमें से कई संगठन उन हिंसक प्रदर्शनों पर मौन धारण किए रहे, जिनमें सिर तन से जुदा करने के खौफनाक नारे लगे थे। यह सही समय है कि इस नारे को प्रतिबंधित करने की मांग खुद मुस्लिम संगठन करें।