एक ऐसे समय जब सड़क से लेकर संसद तक भीड़ की हिंसा के मामले चर्चा और चिंता का विषय बने हुए हैैं तब राजस्थान के अलवर जिले में गो-तस्करी के संदेह में एक व्यक्ति की पीट-पीटकर हत्या यही बताती है कि ऐसी हिंसक घटनाओं को रोकने के पर्याप्त उपाय नहीं किए जा रहे हैैं। यह वही अलवर जिला है जहां करीब एक साल पहले एक अन्य व्यक्ति को इसी तरह गो-तस्कर मानकर मार दिया गया था। इसका मतलब है कि गोरक्षा के नाम पर अराजकता का सहारा लेने वाले तत्व बेलगाम बने हुए हैैं।

चिंताजनक यह है कि राजस्थान में तथाकथित गो-रक्षकों की हिंसा के मामले कुछ ज्यादा ही सामने आ रहे हैैं। अगर कानून एवं व्यवस्था को नीचा दिखाने और सभ्य समाज को शर्मिंदा करने वाली ऐसी घटनाओं पर सख्ती नहीं बरती गई तो वे देश की बदनामी का कारण ही बनेंगी। राजस्थान सरकार ने अलवर की घटना का संज्ञान लेते हुए दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने की बात अवश्य कही है, लेकिन केवल इतना ही पर्याप्त नहीं कि उसने जो कहा है उस पर अमल करे। यह भी जरूरी है कि वह उन अराजक तत्वों को हर संभव तरीके से नियंत्रित करे जो गो-रक्षक का चोला धारण कर हिंसा फैलाने में लगे हुए हैैं। यह काम अन्य राज्य सरकारों को भी प्राथमिकता के आधार पर करना होगा, क्योंकि कथित गो-रक्षकों का उत्पात थमने का नाम नहीं ले रहा है। 

आखिर ये कैसे गो-रक्षक हैैं जो किसी की परवाह करते नहीं दिख रहे हैैं? ध्यान रहे कि चंद दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने भीड़ की हिंसा रोकने के लिए जो दिशानिर्देश जारी किए थे वे मूलत: उस याचिका की सुनवाई करते हुए दिए थे जिसमें गो-रक्षा के नाम पर हो रहे हिंसक व्यवहार को कानून एवं व्यवस्था के लिए खतरा बताया गया था। हालांकि केंद्र सरकार और यहां तक कि खुद गृहमंत्री और प्रधानमंत्री की ओर से कई बार यह कहा जा चुका है कि हिंसा का सहारा लेने वाले फर्जी गो-रक्षक हैं और उनसे सख्ती से निपटने की जरूरत है, लेकिन कोई नहीं जानता कि राज्य सरकारें पर्याप्त सख्ती क्यों नहीं बरत रहीं? यह समझना भी कठिन है कि इन उत्पाती तत्वों को कहां से बल मिल रहा है?

नि:संदेह भीड़ की हिंसा के कई ऐसे भी मामले रहे हैैं जिनके केंद्र में गाय नहीं थी, लेकिन इसमें दोराय नहीं कि कथित गो-रक्षकों की अराजकता मोदी सरकार की छवि पर बहुत भारी पड़ रही है। चूंकि गाय के नाम पर हो रही हिंसा के कारण मोदी सरकार की राष्ट्रीय से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय छवि प्रभावित हो रही है इसलिए उसकी यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अपनी सक्रियता बढ़ाए। माना कि कानून एवं व्यवस्था राज्यों के अधिकार क्षेत्र वाला विषय है और केंद्र सरकार राज्यों को निर्देश ही दे सकती है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अब देश के अधिकांश राज्यों में भाजपा या फिर उसके सहयोगी दलों की सरकारें हैैं। आज के युग में भीड़ र्की ंहसा को लेकर यह तर्क नहीं चल सकता कि पहले भी ऐसे मामले होते रहे हैैं, क्योंकि अब पानी सिर के ऊपर से गुजरता दिख रहा है।