यूपी बोर्ड की हाईस्कूल व इंटरमीडिएट परीक्षा की उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन शनिवार से शुरू हो चुका है, लेकिन इसी के साथ कुछ जिलों के वित्तविहीन परीक्षकों ने अपनी मांगों को लेकर विरोध भी शुरू कर दिया है। शनिवार को वे मूल्यांकन कार्य से न केवल विरत रहे, बल्कि केंद्रों के सामने नारेबाजी व प्रदर्शन किया। शिक्षकों की समस्याएं जायज हो सकती हैं, लेकिन इसके लिए उन्होंने जो समय चुना है वह उचित नहीं है। इस बार हाईस्कूल की दो करोड़ 17 लाख सात हजार 879 और इंटर की दो करोड़ 90 लाख 84 हजार 556 समेत कुल पांच करोड़ सात लाख 92 हजार 435 कॉपियां जांचना है। इस कार्य के लिए प्रदेश में 247 मूल्यांकन केंद्र बनाए गए हैं और मूल्यांकन के लिए एक लाख 46 हजार 275 परीक्षक लगाए गए हैं। कार्य बड़ा है और समय कम।

मूल्यांकन कार्य में लगे वित्तविहीन परीक्षकों ने पुरानी मांगों को लेकर असहयोग शुरू कर दिया है। पहले दिन कम संख्या में परीक्षक पहुंचने से अपेक्षित संख्या में कापियों का मूल्यांकन नहीं हो पाया। कहा तो यही जा रहा है कि जल्द ही मूल्यांकन कार्य तेज होगा और समय से कार्य पूरा हो जाएगा, उम्मीद की जानी चाहिए कि ऐसा ही हो, क्योंकि यदि इसमें विलंब होगा तो जल्द परिणाम जारी करने के प्रयास में काफी गलतियां सामने आने की आशंका है।

विलंब होने से छात्रों को नुकसान होगा। कुल मिलाकर समय पर कार्य पूरा होना जरूरी है। यह बात वित्तविहीन परीक्षक भी समझ रहे हैं। इसलिए उन्होंने ऐसे मौके पर अपनी आवाज बुंलद कर दी है। देखा जाए तो ऐसी घटनाएं अब एक प्रवृत्ति बन गई हैं। निश्चित रूप से ऐसी स्थितियां किसी भी रूप में देश और समाज हित में नहीं है। अपनी मांगों और समस्याओं को ध्यान में रखकर विरोध जताना हर किसी का अधिकार है, लेकिन उस अधिकार की आड़ में दूसरों को नुकसान पहुंचाने का हक किसी को नहीं मिलना चाहिए। बहरहाल अब सरकार के सामने यह चुनौती है कि वह इस समस्या से कैसे निपटती है, लेकिन जो करना है उसे जल्दी करना पड़ेगा, क्योंकि इसमें विलंब होने से लाखों छात्रों पर इसका प्रभाव पड़ सकता है।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश ]