नोटबंदी के दो वर्ष पूरे होने पर उसका स्मरण और उस पर बहस स्वाभाविक है, लेकिन इसमें संदेह है कि इस अप्रत्याशित और बड़े फैसले को नाकाम या घोटाला बताने से विपक्ष को राजनीतिक तौर पर कुछ हासिल होने वाला है। नोटबंदी को लेकर आम जनता के अपने-अपने निष्कर्ष हैं और वह इससे शायद ही प्रभावित हो कि विपक्षी नेता उस पर क्या कह रहे हैं? इस पर हैरत नहीं कि मोदी सरकार और भाजपा नेता नोटबंदी को न केवल सफल करार दे रहे हैं, बल्कि पूरे देश को प्रभावित करने वाले इस फैसले के लिए प्रधानमंत्री को बधाई भी दे रहे हैं। खुद वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह रेखांकित किया है कि नोटबंदी से किस तरह अर्थव्यवस्था को और औपचारिक स्वरूप देने के साथ ही टैक्स का दायरा बढ़ाने में मदद मिली।

उन्होंने उस आलोचना को भी खारिज किया कि जिसके तहत कहा जा रहा था कि सारा पैसा तो वापस बैंकों में पहुंच गया। वित्त मंत्री के अनुसार नकदी को जब्त करना तो सरकार का इरादा ही नहीं था। हालांकि उन्होंने नोटबंदी के फायदे विस्तार से गिनाए हैं, लेकिन यह तय है कि वे विपक्ष को नहीं नजर आने वाले। पक्ष-विपक्ष के दावों के बीच इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि दो वर्ष पहले शायद सरकार को भी इसका भान नहीं था कि नोटबंदी के कैसे नतीजे सामने आएंगे और शायद इसीलिए उसे इस फैसले के मूल मकसद बार-बार बयान करने पड़े। पहले यह माना गया था कि तमाम कालाधन बैंकों में लौटेगा ही नहीं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। येन-केन प्रकारेण वह सब बैंकों में पहुंचने लगा।

इसे देखकर सरकार को नकद आधारित अर्थव्यवस्था के नुकसान गिनाने के साथ ही डिजिटल लेन-देन को प्रोत्साहित करना पड़ा। संयोग से इसमें उसे कामयाबी भी मिली। नकदी का अत्यधिक लेन-देन दो नंबर की अर्थव्यवस्था को ही बल दे रहा था। बड़े पैमाने पर नकद लेन-देन के कारण सरकार को कालेधन की अर्थव्यवस्था की थाह लेना ही मुश्किल हो रहा था।जैसे इसमें दो राय नहीं कि नोटबंदी के फैसले ने कालेधन के तंत्र को हिलाने का काम किया वैसे ही इसमें भी नहीं कि उसके चलते अर्थव्यवस्था को कुछ झटके भी लगे। बाद में ऐसे ही झटके जीएसटी के चलते भी लगे, लेकिन दो साल बाद यह कहा जा सकता है कि नोटबंदी के वैसे असर से मुक्ति मिल गई है जिसके बारे में प्रारंभ में अनुमान नहीं लगाया जा सका था और जिसके कारण छोटे स्तर के उद्योग-व्यापार जगत में ठहराव आया था।

नोटबंदी के आलोचक कुछ भी कहें, इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि उस पैसे के स्रोत की पहचान हुई है जिसके बारे में सरकार को कुछ पता ही नहीं था। इसके चलते टैक्स देने वालों की संख्या के साथ डिजिटल लेन-देन भी बढ़ा और कालेधन का जरिया बनीं लाखों मुखौटा कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने में भी आसानी हुई। बेहतर होगा कि नोटबंदी के केवल दुष्प्रभाव गिनने वाले उसके प्रभाव को भी देखें और यह भी समङों कि नोटबंदी के चलते संदिग्ध खाताधारकों के बारे में जो जानकारी मिली वह आगे भी अर्थव्यवस्था को पारदर्शी बनाने में सहायक साबित होगी।