यह सुखद अहसास है कि केंद्र सरकार की तरह राज्य सरकार भी प्रदेश में 24 घंटे बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने की दिशा में पहल कर रही है। सोमवार को मुख्यमंत्री हरीश रावत ने ऐलान किया दो साल में निर्बाध आपूर्ति होने लगेगी। ऊर्जा संकट से जूझ रहे प्रदेश के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि होगी। दरअसल, अपार जल संपदा वाले इस पहाड़ी राज्य में हालात बेहद मुश्किल होते जा रहे हैं। वर्ष 2002-03 में उत्तराखंड के पास अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के बाद जहां 1057.48 मिलियन यूनिट सरप्लस बिजली उपलब्ध थी, वहीं वित्त वर्ष 2013-14 में प्रदेश में बिजली किल्लत का आंकड़ा 2520.82 मिलियन यूनिट तक जा पहुंचा है। बिजली खपत में करीब 212 फीसद से ज्यादा का इजाफा हुआ, मगर उत्पादन में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो पाई। पर्यावरणीय बंदिशों ने मुश्किलों में इजाफा ही किया है। तीन बड़ी परियोजनाएं पाला मनेरी, (480 मेगावाट), लोहारी नागपाला (600 मेगावाट) व भैरोघाटी (381 मेगावाट) पहले ही बंद की जा चुकी हैं। इसके अलावा गोमुख से उत्तरकाशी तक पर्यावरणीय संवेदनशील क्षेत्र घोषित होने से करीब 271 मेगावाट की 13 छोटी-बड़ी परियोजनाओं का भविष्य भी अधर में है। राह में चुनौती सिर्फ उत्पादन ही नहीं वितरण व्यवस्था भी है। आज तक ऊर्जा निगम लाइन लॉस कम करने का ठोस उपाय नहीं तलाश पाया। हालांकि ऊर्जा निगम की मानें तो पहले से ही देहरादून, मसूरी और नैनीताल जैसे शहरों में 24 घंटे बिजली आपूर्ति की जाती है। इन शहरों को कटौती मुक्त घोषित किया गया है, लेकिन जमीन पर देखें तो ऊर्जा निगम का यह दावा टिकता नजर नहीं आता तो प्रदेश के मामले में तो यह चुनौती और भी बढ़ी है। उत्तराखंड में कटौती के आंकड़ों पर नजर डालें तो तस्वीर चौंकाने वाली है। वर्ष 2002-03 में कटौती का आंकड़ा महज 22.54 मिलियन यूनिट था, जो वित्त वर्ष 2014-15 में बढ़कर 451.00 मिलियन यूनिट पर जा पहुंचा। यानी कटौती के आंकड़े में 20 गुना से ज्यादा वृद्धि दर्ज की गई है। उम्मीद है कि इस सब के बावजूद मुख्यमंत्री ने यदि दो साल में 24 घंटे बिजली का ऐलान किया है तो इसके पीछे कोई ठोस योजना होगी। सीधेतौर पर देखें तो सरकार के पास दो ही विकल्प नजर आते हैं। एक तो यह कि प्रदेश में बिजली उत्पादन बढ़ाया जाए। सीएम कई बार छोटी-छोटी जलविद्युत परियोजनाओं को प्रोत्साहित करने की बात करते रहे हैं। संभव है इस दिशा में काम आगे बढ़ रहा हो। दूसरा विकल्प है कि बिजली खरीदकर राज्यवासियों को यह तोहफा दिया जाए तो इसके लिए आर्थिक स्थिति मजबूत होनी चाहिए। आशा की जानी चाहिए कि यह घोषणा हवाई साबित नहीं होगी।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]