यह अच्छा हुआ कि प्रधानमंत्री ने ऑपरेशन क्लीनमनी की समीक्षा करते हुए राजस्व विभाग के अधिकारियों से कहा कि वे बेनामी संपत्ति धारकों के खिलाफ तेजी से कदम उठाएं। ऐसा किया ही जाना चाहिए और वह भी इस तरह से कि बेनामी संपत्ति के मालिकों को ऑपरेशन क्लीनमनी की आंच महसूस हो। बेनामी संपत्ति टैक्स बचाने के साथ-साथ कालेधन को खपाने और छिपाने का ऐसा जरिया है जिससे सभी अवगत हैं। पता नहीं पहले की सरकारों ने इस गोरखधंधे को रोकने के लिए समय रहते ठोस कदम क्यों नहीं उठाए? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेनामी संपत्ति वालों के खिलाफ कार्रवाई करने का वादा नोटबंदी का फैसला लेने के बाद ही किया था। ऐसा कोई वादा स्वाभाविक ही था। इस मामले में मोदी सरकार ने अपनी गंभीरता का परिचय बेनामी संपत्ति निरोधक कानून में संशोधन करके दिया। संशोधित कानून के तहत सरकार दूसरे के नाम से खरीदी गई जमीन-जायदाद को जब्त भी कर सकती है। हालांकि बेनामी संपत्ति निरोधक कानून में संशोधन के बाद राजस्व विभाग ने अपनी सक्रियता बढ़ाई है और तमाम संदिग्ध लोगों की छानबीन में जुटा हुआ है, लेकिन अभी तक ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया है कि किसी की बेनामी संपत्ति जब्त की गई हो या फिर किसी पर जुर्माना लगाया हो अथवा जेल भेजा गया हो। इसके पहले कि बेनामी संपत्ति वाले किसी जतन-जुगाड़ से बच निकलने का कोई रास्ता निकालें, उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। ऐसे लोग किसी नरमी या रियायत के पात्र इसलिए नहीं, क्योंकि ऐसी ज्यादातर संपत्ति काली कमाई से हासिल की गई है। इसमें कोई संदेह नहीं रहना चाहिए कि आम तौर पर यह काली कमाई भ्रष्ट और अवैध तरीकों से अर्जित की जाती है। ऐसे लोग कम ही हैं जो केवल टैक्स बचाने के लिए दूसरे के नाम से संपत्ति खरीदते हैं।
फिलहाल यह कहना कठिन है कि प्रधानमंत्री ने राजस्व विभाग के अधिकारियों को तेजी से कार्रवाई करने के जो निर्देश दिए उससे बेनामी संपत्ति वाले चेतेंगे या नहीं? बेहतर तो यही होगा कि वे चेत जाएं और उन प्रावधानों का लाभ उठाएं जिनके तहत जुर्माना अदा कर कठोर कार्रवाई से बचा जा सकता है। बेनामी संपत्ति निरोधक कानून के साथ-साथ अन्य कानूनों का इस्तेमाल इस तरह किया जाना चाहिए जिससे काला धन नए सिरे से न एकत्रित होने पाए। प्रधानमंत्री ने राजस्व विभाग के अधिकारियों को करदाताओं के आधार को भी व्यापक बनाने का निर्देश दिया। ऐसे निर्देश पहले भी दिए जा चुके हैं। इसके अतिरिक्त यह लगातार महसूस किया जा रहा है कि इतनी बड़ी आबादी वाले देश में करदाताओं की संख्या बहुत कम है। मुश्किल यह है कि नीति-नियंताओं की नजर वेतनभोगी वर्ग से आगे कम ही जाती है। जब यह जाना जा रहा है कि तमाम लोग सक्षम होते हुए भी आयकर नहीं देते तब फिर ऐसे लोगों को टैक्स के दायरे में लाने के उपायों पर अमल क्यों नहीं हो रहा है? कम से कम यह तो किया ही जाना चाहिए कि लोग कृषि योग्य जमीन खरीद कर टैक्स बचाने में सफल न होने पाएं। यह भी ध्यान रहे कि जितनी जरूरत करदाताओं की संख्या बढ़ाने की है उतनी ही आयकर विभाग के कामकाज को दुरुस्त करने की भी।

[ मुख्य संपादकीय ]