--------
जनाजे में आतंकियों द्वारा हथियार लहराना कश्मीर की स्थिति की गंभीरता को दर्शाती है। सेना को आतंकवाद विरोधी अभियान चलाने की जरूरत है
----------
दक्षिण कश्मीर के कुलगाम कस्बे में सुरक्षा बलों की जवाबी कार्रवाई में मारे गए आतंकवादी के जनाजे में दहशतगर्दों द्वारा हथियार लहराए जाने की घटना स्थिति की गंभीरता को दर्शाती है। आतंकवादियों की यह कोशिश रहती है कि किसी तरह ऐसे मौके पर अपनी उपस्थित दर्ज करवा कर स्थिति को विस्फोटक बनाया जाए। एक बात तो तय है कि घाटी में बेकाबू होते हालात पर सुरक्षा बल पूरी सतर्कतापूवर्क से काम कर रहे हैं। दक्षिण कश्मीर के शोपियां और पुलवामा जिलों के अतंर्गत बीस गांवों में तलाशी अभियान चलाया, जिसकी बदौलत आतंकवादी सुरक्षा बलों के घेरे में फंसते नजर आ रहे हैं। विगत दिवस सुरक्षा बलों ने लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी सेठा को मार गिराया, जो बड़ी सफलता के रूप में देखी जा रही है। यह आतंकी काफी समय से घाटी में अपने नेटवर्क को बढ़ा रहा था और हाल ही में वायरल हुए वीडियो में भी यह देखा गया। इस आतंकी के जनाजे में आतंकियों ने वर्ष 1990 की स्थिति को फिर से दोहराने की कोशिश की थी, जब अलगाववादी मीरवाइज मौलवी फारूक के जनाजे के दौरान बंदूकें लहराई गईं और सुरक्षा बलों के साथ हुई मुठभेड़ में 21 मई 1990 में 72 मासूम लोग मारे गए थे, जिनमें चार महिलाएं भी शामिल थीं। यह वह समय था जब आतंकवाद चरम पर था। अलगाववादियों की कोशिश है कि घाटी में फिर से 1990 जैसे हालात पैदा किए जाएं जिससे कि सुरक्षा बलों को बदनाम कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकी जाएं। मीरवाइज मौलवी फारूक ने पाकिस्तानी समर्थक कई संगठनों का एक दल ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस के रूप में बनाया था। हालांकि, मौलवी फारूक नरम धड़े से जुड़े एक नेता थे जिनकी एक सोची समझी साजिश के तहत पाकिस्तान ने हत्या करवा दी थी। हालांकि, स्थिति 1988 जैसी नहीं है लेकिन अलगाववादियों की यह कोशिश है कि इतिहास को फिर दोहराया जाए। इसमें सुरक्षा बलों का मनोबल भी बढ़ाने की जरूरत है क्योंकि उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी अपना धैर्य नहीं गंवाया। दक्षिण कश्मीर में अभी भी ऐसे जिले हैं, जहां आतंकवादियों का वर्चस्व बना हुआ है। सेना को जरूरत है कि वे शोपियां और पुलवामा की तर्ज पर आतंकवाद विरोधी अभियान चलाए ताकि सुरक्षा बलों का मनोबल कायम रहे। बाबा अमरनाथ यात्रा आगामी 29 जून को शुरू होने जा रही है, ऐसे में अलगाववादियों की कोशिश होगी कि वह अपना वर्चस्व पारंपरिक पहलगाम यात्रा मार्ग पर दिखाएंगे। इसलिए सेना को जरूरत है कि श्रद्धालुओं में भी विश्वास बहाली के लिए ऐसा अभियान चलाएं।

[ स्थानीय संपादकीय : जम्मू-कश्मीर ]