नई दिल्ली, जेएनएन। ब्रिटिश-इटैलियन कंपनी अगस्ता वेस्टलैंड से हेलिकॉप्टर खरीदने के क्रम में हुए घोटाले के बिचौलिए क्रिश्चियन मिशेल ने एपी, आरजी, मिसेज गांधी, फैमिली आदि को लेकर जो कथित खुलासे किए उन्हें लेकर हंगामा मचना ही था। यह संभव ही नहीं कि चुनाव के मौके पर किसी घोटाले में नेताओं के नाम सामने आएं और उसे लेकर राजनीतिक दलों में आरोप- प्रत्यारोप का सिलसिला न शुरू हो। इस पर हैरत नहीं कि क्रिश्चियन मिशेल के कथित खुलासे के बाद केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने यह सवाल उछाला कि आखिर एपी और आरजी कौन है?

इस सवाल से और आगे जाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कहकर और हलचल मचाई कि एपी का मतलब तो अहमद पटेल है। इसी के साथ उन्होंने यह सवाल भी किया कि आखिर अहमद पटेल किस परिवार के निकट हैं? इसके बाद इस पर भी हैरत नहीं कि खुद अहमद पटेल ने प्रधानमंत्री को निशाने पर लेते हुए कहा कि उन्होंने और उनके साथियों ने बिना किसी सुबूत गलत जगह हाथ डाला है।

इस सबके बीच क्रिश्चियन मिशेल ने यह कहकर मामले को और उलझा दिया कि मैंने तो किसी का नाम ही नहीं लिया। पता नहीं सच क्या है, लेकिन यह ठीक नहीं कि चुनाव के दौरान किसी मामले की चुनिंदा जानकारी सार्वजनिक हो। संबंधित अदालत को यह देखना चाहिए कि ऐसा कैसे हो रहा है? हेलिकॉप्टर खरीद घोटाले का सच इससे तय नहीं हो सकता कि उसकी सुनवाई के दौरान कौन क्या कह रहा है, बल्कि इससे तय होगा कि अदालत किस नतीजे पर पहुंचती है?

हेलिकॉप्टर खरीद घोटाले में जब तक अदालत अपना फैसला नहीं सुना देती तब तक राजनीतिक दलों के बीच की तू तू-मैं मैं का एक सीमित महत्व ही है। पता नहीं अदालत किस नतीजे पर पहुंचती है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि हेलिकॉप्टर खरीद सौदे को खुद मनमोहन सरकार ने रद किया था। इस सौदे को रद करने का कारण था खरीद संबंधी अनुबंध की शर्तें न पूरी होना और दलाली के तौर पर 360 करोड़ रुपये के भुगतान का आरोप सामने आना। विदेशी सौदों और खासकर रक्षा सौदों में दलाली के लेन-देन कोई नई-अनोखी बात नहीं। न जाने कितने रक्षा सौदों में दलाली के आरोप लग चुके हैं और इसके चलते वे रद भी हो चुके हैं।

जो काम नहीं हो सका वह यह कि इन आरोपों को साबित नहीं किया जा सका। आखिर यह किससे छिपा है कि बोफोर्स सौदे में दलाली के लेन-देन और रकम के इधर से उधर होने के सुबूत सामने आने के बाद भी किसी को दोषी नहीं साबित किया जा सका। इसका कारण जांच एजेंसियों का सही ढंग से काम न करना और उनका सरकार के दबाव में आना ही रहा। कहना कठिन है कि हेलिकॉप्टर खरीद घोटाले में जांच एजेंसियां मामले की तह तक पहुंच सकेंगी या नहीं, लेकिन कांग्रेस अपने शासन के समय होने वाले घपलों-घोटालों से मुंह नहीं मोड़ सकती। आखिर कौन नहीं जानता कि मनमोहन सरकार के समय एक के बाद एक कई घोटाले हुए? जरूरी केवल यह नहीं कि इन घोटालों की तह तक जाया जाए, बल्कि यह भी है कि यह काम जल्द हो।