अमेरिका ने ईरान के शीर्ष सैन्य अधिकारी मेजर जनरल कासिम सुलेमानी को निशाना बनाकर एक बार फिर पश्चिम एशिया को अशांति के मुहाने पर ला खड़ा करने का काम किया है। सुलेमानी की हत्या के बाद ईरान जिस तरह बदले की आग से भरा हुआ है और अमेरिका को सबक सिखाने की धमकी दे रहा है उसके नतीजे अच्छे नहीं होंगे। इन संभावित नतीजों से केवल पश्चिम एशिया ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया आशंकित है। इसका एक बड़ा कारण यही है कि यह वह क्षेत्र है जो विश्व की तेल जरूरतों को पूरा करता है। साफ है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने पूरी दुनिया के लिए समस्या खड़ी कर दी है।

इससे इन्कार नहीं कि सुलेमानी पश्चिम एशिया में अमेरिकी प्रभाव के खिलाफ हर तरह से सक्रिय थे और वह दुनिया के विभिन्न हिस्सों में फैले कई अतिवादी एवं आतंकी गुटों की मदद भी कर रहे थे, लेकिन इस सबके बावजूद अमेरिकी राष्ट्रपति की यह दलील बहुत दमदार नहीं लगती कि वह अमेरिका के खिलाफ किसी बड़ी साजिश को अंजाम दे रहे थे। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने चुनावी अभियान को धार देने और इस्लामी जगत में ईरान विरोधी ताकतों को बल देने के लिए सुलेमानी को निशाना बनाया। नि:संदेह यह भी लगता है कि उन्होंने इस पर ज्यादा विचार-विमर्श करने की जरूरत नहीं समझी कि उनकी इस कार्रवाई का असर क्या होगा?

यह तय है कि यदि ईरान ने अमेरिकी हितों को नुकसान पहुंचाने की कोई कोशिश की तो अमेरिकी राष्ट्रपति भी चुप बैठने वाले नहीं हैं। वह पहले से ही ईरान को चेताने के साथ यह बताने में लगे हुए हैं कि अमेरिकी सेनाओं के संभावित लक्ष्य क्या होंगे? पश्चिम एशिया में अपना दबदबा बढ़ाने में जुटे ईरान के अनैतिक तौर-तरीकों की तरफदारी नहीं की जा सकती, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति सत्ता में आने के बाद से ही जिस तरह उसको अस्थिर करने में लगे हुए हैं उसे भी सही नहीं कहा जा सकता। गैर जिम्मेदाराना हरकत करने वाले देशों से निपटने की अमेरिका की रीति-नीति जिम्मेदार राष्ट्र के अनुकूल नहीं।

अमेरिकी प्रशासन में जिम्मेदारी का यह अभाव ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से और अधिक बढ़ा ही है। ट्रंप ने जिस आधार पर कासिम सुलेमानी को निशाना बनाना जरूरी समझा उससे बड़े आधार तो पाकिस्तानी सेना के जनरलों के खिलाफ मौजूद हैं। जब अनगिनत अमेरिकी अधिकारियों के साथ खुद राष्ट्रपति ट्रंप इस सच को स्वीकार कर चुके हैं कि पाकिस्तानी सेना तालिबान एवं हक्कानी नेटवर्क सरीखे आतंकी संगठनों को पाल-पोस रही है तब फिर यह सवाल तो उठेगा ही कि आखिर अमेरिकी ड्रोन पाकिस्तानी जनरलों को क्यों नहीं देख पा रहे हैं?