बिहार बोर्ड इंटरमीडिएट परीक्षा की मेरिट सूची में धांधली प्रमाणित हो जाना राज्य की प्रगति और प्रतिष्ठा के लिए बहुत बड़ा धक्का है। लगातार दूसरे साल ऐसी धांधली प्रकाश में आने के बाद राष्ट्रीय परिदृश्य में बिहार की शिक्षा एवं परीक्षा प्रणाली को लेकर ऐसा नकारात्मक संदेश गया है जिसकी टीस राज्य के हर व्यक्ति को अरसे तक महसूस होगी। इंटरमीडिएट के बाद उच्च शिक्षा के लिए बिहार के विद्यार्थी बड़ी संख्या में यूपी, दिल्ली तथा देश के अन्य प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों का रुख करते हैं। इन मेधावियों को उन संस्थानों में बिहारी होने के नाते उपहास का पात्र बनना पड़ेगा। बेशक इस धांधली का संबंध कुछ लोगों से होगा लेकिन बिहार के हर विद्यार्थी को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी। गौरतलब यह भी है कि बिहार बोर्ड ने अब तक सिर्फ उन दो छात्रों को मेरिट लिस्ट से हटाया है जिनकी पोल मीडिया के जरिए खोली जा चुकी थी। इससे इस आरोप को बल मिल रहा है कि बिहार बोर्ड किन्हीं कारणों से इस मामले पर लीपापोती कर रहा है। यह आश्चर्यजनक एवं कष्टप्रद है कि जिस धांधली के चलते बिहार की प्रतिष्ठा आहत हुई, उसके प्रति अभी भी बिहार बोर्ड का रवैया किसी हद तक नरम है। इस प्रकरण में हाजीपुर के जिस विशुन राय कॉलेज की मुख्य भूमिका सामने आई है, उसके प्राचार्य-प्रबंधक भी फिलहाल किसी कानूनी कार्रवाई की जद में नहीं आए हैं। बिहार बोर्ड का यह रवैया स्वाभाविक रूप से तरह-तरह की अटकलबाजियों को हवा दे रहा है। बिहार बोर्ड के अध्यक्ष एवं अन्य पदाधिकारी यह तर्क देकर नहीं निकल सकते कि बोर्ड को जो उत्तर पुस्तिकाएं मिलीं, उनके आधार पर मेरिट लिस्ट जारी की गई। बिहार बोर्ड के पास इस बात का कोई तार्किक जवाब नहीं है कि सिर्फ विशुन राय कॉलेज की उत्तर पुस्तिकाएं मूल्यांकन के लिए पटना क्यों मंगवाई गईं?

वास्तव में गेंद अब राज्य सरकार के पाले में आ गई है। बिहार बोर्ड इस मामले में कोई सख्त कार्रवाई करने को इच्छुक या उत्सुक नहीं दिखता। ऐसे में राज्य सरकार को एक जांच टीम गठित करके पूरी परीक्षा की पारदर्शी जांच करानी चाहिए। शिक्षा के मोर्चे पर बिहार की प्रतिष्ठा बचाने का यही एक उपाय है कि इस प्रकरण में शामिल परीक्षाार्थियों से लेकर बिहार बोर्ड के शीर्ष पदाधिकारियों तक को जांच के दायरे में रखा जाए, तथा जो भी दोषी साबित हो उसे कठोरतम संभव सजा दिलाई जाए। यदि इस प्रकरण की लीपापोती के प्रयास सफल हो गए तो यह राज्य की मेधा और प्रतिष्ठा के साथ घातक खिलवाड़ होगा। इसी कॉलेज ने पिछले साल भी धांधली की थी, इसके बावजूद बोर्ड ने कोई कार्रवाई नहीं की। जाहिर है कि अपनी कार्यशैली के चलते बोर्ड खुद 'कठघरेÓ में है। यह मानना कठिन है कि किसी स्तर पर बोर्ड की मिलीभगत के बगैर इतना बड़ा घोटाला संभव है लेकिन विचित्र स्थिति है कि सवालों से घिरा बिहार बोर्ड खुद इस मामले की जांच कर रहा है। अब समय आ गया है कि राज्य सरकार हस्तक्षेप करे और किसी अन्य तटस्थ एजेंसी को जांच की जिम्मेदारी सौंपे। जांच भी समयबद्ध होनी चाहिए ताकि जांच के निष्कर्षों के आधार पर अगले साल पवित्र परीक्षा कराने के लिए मुकम्मल इंतजाम किए जा सकें।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]