प्रदेश को पर्यटन के क्षेत्र में पहचान दिलाने और प्रदेश की आर्थिकी सुदृढ़ करने के लिए योजनाएं तो कई स्तर पर बनीं लेकिन उन्हें मूर्त रूप देने में अफसरशाही और सरकारों की दिलचस्पी कम ही रही, यही वजह है कि हिमाचल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पा रहा है। अपार संभावनाओं के बावजूद पहाड़ी प्रदेश हिमाचल में पर्यटन क्षेत्र में विकास की रूपरेखा नहीं बन सकी। सरकारी उदासीनता व प्रशासनिक लापरवाही के कारण ही प्रदेश में आज तक पर्यटन उस स्तर तक नहीं पहुंच पाया जहां से लोगों की आर्थिकी के साथ सरकार की आय का बड़ा साधन बन सके।

प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज हिमाचल प्रदेश में धार्मिक व साहसिक पर्यटन की भरपूर संभावना है। पर्यटन को प्रदेश की आर्थिकी का अहम हिस्सा माना जाता है और इसे बढ़ावा देने के दावे भी हर मंच से होते हैं मगर इसके बावजूद पर्यटन विकास किसी भी सरकार के एजेंडे में शामिल नहीं हो पाया है। यही वजह है कि पर्यटकों की आमद बढ़ने के बावजूद हिमाचल इन्हें लंबे समय तक बांधे रखने में सफल नहीं हो पा रहा है। पहाड़ों को छलनी कर प्राकृतिक सुंदरता को नुकसान पहुंचाया जा रहा है जो पर्यटन के नाम पर करोड़ों की आर्थिकी प्रदान करती है। यहां आने वाले लाखों पर्यटक मात्र कुछ दिन में ही लौटने को मजबूर हैं। देवभूमि हिमाचल को प्रकृति ने वे नेमतें बख्शी हैं जिनसे इसे मिनी स्विट्जरलैंड, छोटी काशी, पहाड़ों की रानी व जन्नत जैसे शब्दों से पुकारा जाता है लेकिन प्राकृतिक सौंदर्य को सहेजने में विफलता के साथ कृत्रिम पर्यटन के मामले में हिमाचल बहुत पीछे है।

प्रदेश में पर्यटन का अपना बजट मात्र 8-10 करोड़ रुपये का है। इससे या तो पर्यटन स्थलों को ही विकसित कर लें या फिर पर्यटन का प्रचार हो। बजट की कमी के कारण प्राकृतिक सौंदर्य को और सहेजने के लिए कुछ नहीं किया गया जबकि राजस्थान, गुजरात जैसे अन्य बड़े राज्यों में कई सौ करोड़ रुपये पर्यटन को विकसित करने पर खर्च किए जा रहे हैं। प्रदेश में तीन साल के दौरान एशियन विकास बैंक की मदद से पर्यटन को विकसित करने के लिए करीब 900 करोड़ रुपये के 17 प्रोजेक्ट पर कार्य चल रहा है। इसमें शिमला व धर्मशाला के सुंदरीकरण सहित अन्य योजनाएं शामिल हैं।हिमाचल में पर्यटन कारोबार बढ़ाने के लिए जब तक सरकारी इच्छाशक्ति फाइलों से आगे नहीं बढ़ पाएगी तब तक इसे पंख नहीं लग पाएंगे

[हिमाचल प्रदेश संपादकीय]