देशी-विदेशी पर्यटकों की आमद बढ़ेगी तो सरकार के राजस्व में भी इजाफा होगा। और तो और रोजगार की संभावनाएं भी बढ़ेगी।
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झारखंड के पर्यटन स्थलों को विश्व के मानचित्र पर स्थापित करने की सरकार की सक्रियता की प्रशंसा की जानी चाहिए। 108 मंदिरों के समूह दुमका के मलूटी मंदिर की प्रसिद्धि बटोरने के बाद सरकार झारखंड की धार्मिक राजधानी देवघर को संवारने में जुटी है। राजधानी रांची के बड़ा तालाब में 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद की 30 फीट ऊंची (देश की सबसे ऊंची विवेकानंद की प्रतिमा) प्रतिमा स्थापित किए जाने की तैयारी है। इसी तरह चतरा के इटखोरी में बौद्ध धर्म का दुनिया का सबसे ऊंचा (30 मीटर) प्रेयर व्हील (प्रार्थना चक्र) बनाए जाने की घोषणा मुख्यमंत्री ने कर रखी है। अभी सबसे ऊंचा प्रेयर व्हील चीन में है, जिसकी ऊंचाई 26 मीटर है। इटखोरी का भद्रकाली मंदिर परिसर सनातन, बौद्ध एवं जैन धर्म का संगम स्थल है। लिहाजा इसे अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने पर आमादा सरकार इसपर 700 करोड़ रुपये खर्च करने को तैयार है। जमशेदपुर-रांची-लातेहार-पलामू को जहां इको सर्किट के रूप में विकसित करने की योजना बनाई गई है, वहीं पारसनाथ-इटखोरी-कौलेश्वरी का विकास आध्यात्मिक सर्किट के रूप में किया जा रहा है। देवघर-बासुकीनाथ-दुमका-मलूटी का विकास शिव सर्किट के रूप में होगा। रामगढ़ स्थित चुटुपालू घाटी के निकट दर्शक दीर्घा, देवघर में फूड क्राफ्ट संस्थान की स्थापना, पर्यटन की संभावनाओं को प्रदर्शित करने के लिए लोहरदगा में स्वागत द्वार का निर्माण, पतरातू में फिल्म सिटी का प्रस्ताव जैसे पर्यटन विकास की दर्जनों योजनाएं झारखंड को पर्यटन के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय नक्शे पर लाने में सफल होगा, माना जा सकता है। सरकार का मानना है कि इन प्रयासों से जहां देशी-विदेशी पर्यटकों की आमद बढ़ेगी, वहीं सरकार के राजस्व में भी इजाफा होगा। और तो और रोजगार की संभावनाएं भी बढ़ेंगी। पर्यटन के जरिए झारखंड को पहचान दिलाने की सरकार की यह कोशिश काबिले तारीफ है। इससे इतर सरकार की यह सोच तबतक साकार नहीं होगी, जबतक पर्यटन स्थलों पर सरकार सुरक्षा का पुख्ता प्रबंध नहीं करती है। पर्यटन क्षेत्रों के आसपास आधारभूत संरचनाओं का समुचित विकास नहीं होता है। स्थानीय ग्रामीणों को संबंधित पर्यटन स्थलों से नहीं जोड़ा जाता है।

[ स्थानीय संपादकीय: झारखंड ]