यह समय की मांग और जरूरत है कि कारोबारियों को जीएसटी की जटिलताओं से बचाया जाए, लेकिन इस टैक्स व्यवस्था को सरल-सुगम बनाने के नाम पर ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए जिससे टैक्स चोरी का सिलसिला कायम रहे या फिर और गति पकड़े। यह सूचना कारोबार जगत को राहत देने वाली हो सकती है कि जीएसटी परिषद रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म खत्म करना चाह रही है, लेकिन यह ठीक नहीं कि पहले जिस व्यवस्था को टैक्स चोरी रोकने में सहायक माना जा रहा था उसे अब लागू न करने पर विचार किया जा रहा है।

रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म वह प्रस्तावित व्यवस्था है जिसमें जीएसटी के तहत पंजीकृत उन व्यापारियों को खुद टैक्स देना होगा जो गैर-पंजीकृत व्यापारियों से एक दिन में पांच हजार या उससे अधिक का सामान या सेवाएं हासिल करते हैैं। पहले इस व्यवस्था कोे लागू करने से इसलिए बचा जाता रहा ताकि व्यापारियों को अनावश्यक परेशानी का सामना न करना पड़े, लेकिन ऐसा लगता है कि अब उससे पूरी तौर पर पल्ला झाड़ने की तैयारी है।

कहना कठिन है कि इस मसले पर अंतिम निर्णय क्या होगा, लेकिन इस पर गौर करना होगा कि जीएसटी परिषद के फैसले से कहीं टैक्स चोरी करने वाले फायदे में न रहें। रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म के साथ-साथ कुछ उन प्रावधानों को भी ठंडे बस्ते में डालने पर विचार किया जा रहा है जो कथित तौर पर कारोबारियों के लिए असुविधाजनक हैैं। इससे इन्कार नहीं कि जीएसटी के कई प्रावधान खासे जटिल हैैं, लेकिन कुछ सरल प्रावधान भी उन कारोबारियों को जटिल नजर आते हैैं जो कंप्यूटर-इंटरनेट आधारित तकनीक से अपरिचित हैैं अथवा उसका इस्तेमाल करने को लेकर तत्पर नहीं।

एक समस्या यह भी है कि जीएसटी आधारित तकनीक उतनी सुगम नहीं जितनी होनी चाहिए। इस सिलसिले में वित्त सचिव का यह कहना है कि हमें तकनीक ने नीचा दिखाया, लेकिन तकनीक के कुछ जानकार जीएसटी के जटिल नियम-कानूनों को दोष दे रहे हैैं? बेहतर हो कि इस पहेली का हल जल्द निकले कि जीएसटी संबंधी तकनीक जटिल है या फिर उसके नियम-कानूनों के अनुपालन की प्रक्रिया? नि:संदेह यह समझ आता है कि चुनावी साल में सरकार जीएसटी के ऐसे प्रावधान बनाने से बचे जो कारोबारियों के लिए सिरदर्द बन जाएं, लेकिन यह समझना कठिन है कि वास्तव में सरल नियम-कानून क्यों नहीं बनाए जा सकते? यह किसी से छिपा नहीं कि जीएसटी के कई सरल बताए जाने वाले प्रावधान भी कठिन हैैं।

आखिर एक साल बाद भी जीएसटी का रिटर्न दाखिल करना सहज-सुगम क्यों नहीं है? इसे आसान बनाने के लिए लाए जा रहे नए सिंगल रिटर्न फार्म पर तभी संतोष जताया जा सकता है जब वह वास्तव में सरल हो। आखिर इसका क्या मतलब कि कंपोजीशन स्कीम के तहत आने वाले कारोबारियों के लिए पहले हर महीने रिटर्न दाखिल करना ठीक समझ गया, फिर तीन महीने में सिर्फ एक बार और अब यह कहा जा रहा है कि साल में सिर्फ एक रिटर्न भी संभव है। चूंकि जीएसटी को वास्तव में सरल बनाना और टैक्स चोरी के छिद्रों को बंद करना अभी भी शेष है इसलिए इस काम को प्राथमिकता के आधार पर पूरा किया जाना चाहिए।