आर्थिक रूप से बड़े देशों के समूह जी-20 के साझा घोषणा पत्र में यह उल्लेख किया जाना भारत की एक बड़ी जीत है कि भगोड़े आर्थिक अपराधियों को किसी तरह का संरक्षण नहीं दिया जाएगा। भारत एक अर्से से यह मांग करता चला आ रहा है कि विश्व समुदाय भगोड़े आर्थिक अपराधियों के खिलाफ सख्त रवैया अपनाए और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसी कोई व्यवस्था बने जिससे ऐसे अपराधी किसी भी देश में शरण न ले सकें। हालांकि आर्थिक अपराध को अंजाम देने के बाद अपने देश से निकल कर किसी अन्य देश में शरण लेने वालों से दुनिया के तमाम देश परेशान हैैं, लेकिन इस परेशानी को पहली बार भारत ने ही प्रमुखता से बयान किया।

यह अच्छा है कि जी-20 समूह ने भारत की इस पुरानी मांग को अपने घोषणा पत्र का हिस्सा बनाया, लेकिन बेहतर यह होगा कि इस समस्या के समाधान के लिए वैसे ही कुछ नियम-कानून बनाए जाएं जैसे काला धन जमा करने वालों के खिलाफ बनने शुरू हुए हैैं। यह ध्यान रहे कि इस तरह के नियम-कानून बनाने की जरूरत भी भारत ने ही रेखांकित की थी। आज जब विश्व अर्थव्यवस्था अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर आधारित है तब फिर यह भी समय की मांग है कि आर्थिक अपराध से निपटने में भी दुनिया के देश सहयोग का परिचय दें। यह बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए कि कोई आर्थिक अपराधी किसी अन्य देश जाकर वहां की नागरिकता लेने में समर्थ रहे। कारोबारी के रूप में किसी अन्य देश के बाशिंदे को नागरिकता देने के पहले यह जांच-परख की ही जानी चाहिए कि कहीं उसने अपने देश में कोई आर्थिक अपराध तो नहीं किया है?

समस्या केवल इतनी ही नहीं है कि धोखाधड़ी करके भाग जाने वाले आसानी से अन्य देश की नागरिकता पाने में समर्थ हो जा रहे हैैं, बल्कि यह भी है कि वे मानवाधिकारों की आड़ भी हासिल कर ले रहे हैैं। कई देशों की कानूनी प्रक्रिया इतनी जटिल है कि आर्थिक अपराधियों के प्रत्यर्पण में बरसों लग जाते हैैं। यह एक तथ्य है कि ब्रिटेन से विजय माल्या और नीरव मोदी के प्रत्यर्पण में देरी हो रही है। इसी तरह की देरी मेहुल चोकसी के मामले में भी हो रही है, जिसने एंटीगुआ में शरण ले रखी है। भारत की तमाम कोशिश के बाद वहां के प्रधानमंत्री ने उसकी नागरिकता रद करने की हामी तो भर दी है, लेकिन कहना कठिन है कि प्रत्यर्पण संबंधी कानूनी प्रक्रिया कब तक पूरी होगी?

यह अजीब है कि एक ओर ब्रिटेन और एंटीगुआ जैसे देश हैैं जो आर्थिक भगोड़ों को प्रत्यर्पित करने में जरूरत से ज्यादा समय लेते हैैं और दूसरी ओर संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश हैैं जो गड़बड़ी के सुबूत देखते ही संदिग्ध व्यक्ति को उसके देश भेजने में तत्परता दिखाते हैैं। जैसे काला धन छिपाने वालों पर कोई रहम नहीं किया जाना चाहिए वैसे ही आर्थिक भगोड़ों पर भी। जी-20 समूह को इसका अहसास होना चाहिए कि उसकी ओर से की जाने वाली घोषणाओं के अमल में जब देरी होती है तो उसकी सामर्थ्य को लेकर सवाल ही उठते हैैं। इस समूह को अपनी घोषणाओं के अमल में कहीं अधिक तत्पर दिखना चाहिए।