मरीजों के जीवन के साथ खिलवाड़ करने वालों को किसी भी सूरत में नहीं बख्शा जाना चाहिए। उन पर कड़ी कार्रवाई हो।

देश की राजधानी में नकली दवा बनाने वाली तीन फैक्टियों का पकड़ा जाना गंभीर मामला है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि पिछले दो साल से नकली दवा बनाने का काम चल रहा था, लेकिन पुलिस व प्रशासन को इसकी भनक तक नहीं लगी। इससे पता चलता है कि दिल्ली-एनसीआर में बड़े पैमाने पर बाजार में ब्रांडेड कंपनियों के नाम पर दोयम दर्जे की दवाएं बिक रही हैं। इस तरह से मरीजों के जीवन के साथ खिलवाड़ हो रहा है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आइएमए) भी इसको लेकर चिंता जता चुका है।

एसोचैम की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय बाजार में करीब 25 फीसद दवाएं नकली हैं। टैबलेट व कैप्सूल से लेकर सीरप व कुछ टीके भी नकली आ रहे हैं। दिल्ली में पकड़े गए आरोपियों के पास से भी दर्द निवारक, गैस की समस्या सहित कई गंभीर बीमारियों की नकली दवाएं बरामद हुई हैं। इसके सेवन से मरीज की जान भी जा सकती है। दिल्ली में देशभर से मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। वह इस उम्मीद से यहां पहुंचते हैं कि दिल्ली के बड़े अस्पतालों में बेहतर इलाज से वह स्वस्थ हो जाएंगे, लेकिन यहां नकली दवाइयां उनकी बीमारियां बढ़ा रही हैं। 1दरअसल दवाओं पर निगरानी व जांच के लिए प्रयोगशालाओं की कमी है। इस वजह से नकली दवाओं का कारोबार बढ़ रहा है। सरकार को इस मामले पर सख्ती से निपटना चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट भी बताती है कि नकली दवाओं की वजह से दुनिया भर में हर साल करीब 10 लाख लोगों की मौत होती है। इसलिए देश में नकली दवाओं के कारोबार व इस्तेमाल को रोकने के लिए केंद्र सरकार को कारगर कदम उठाना होगा। डॉक्टरों, व्यापारिक संगठनों व आम लोगों को भी इसे लेकर सजग रहना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय: दिल्ली ]