आखिर इससे शर्मनाक और क्या हो सकता है कि गांधी जी की जन्मस्थली गुजरात से हजारों उत्तर भारतीय अनिष्ट की आशंका में पलायन कर रहे हैैं? वे अनिष्ट की आशंका इसलिए घिर गए हैैं, क्योंकि उन्हें अवांछित करार देने के साथ ही धमकाया भी जा रहा है। हालांकि उत्तर भारतीयों और विशेषकर उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों को धमकाने वाले तत्वों की गिरफ्तारी की गई है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि उनके पलायन का सिलसिला कायम है। इससे तो यही लगता है कि गुजरात सरकार डरे-सहमे उत्तर भारतीयों को यह भरोसा नहीं दिला पा रही है कि उनके साथ कुछ अनपेक्षित नहीं घटने दिया जाएगा।

यह अच्छा नहीं हुआ कि राज्य सरकार उन अराजक तत्वों पर समय रहते लगाम नहीं लगा सकी जो एक बच्ची से दुष्कर्म की घटना के बाद उत्तर भारतीयों को धमकाने में जुट गए। इसे पागलपन के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता कि किसी एक के आपराधिक कृत्य के जवाब में देश के एक बड़े हिस्से के लोगों को एक खतरे के तौर पर चित्रित किया जाने लगे। दुर्भाग्य से गुजरात में ऐसा ही किया गया। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैैं कि उत्तर भारतीयों को डराने-धमकाने का काम सुनियोजित साजिश के तहत किया गया और इसीलिए एक के बाद एक शहर से उत्तर भारतीय जान बचाने के लिए भागने को मजबूर हुए।

क्या बिना राजनीतिक शह के दहशत का ऐसा माहौल बनाया जाना संभव है? उत्तर भारतीयों में खौफ पैदा करने की इस साजिश के पीछे कांग्रेस के विधायक अल्पेश ठाकोर का हाथ माना जा रहा है, जो बेतुके और भड़काऊ बयानों के लिए जाने जाते हैैं। केवल इतना ही पर्याप्त नहीं कि उन्हें कठघरे में खड़ा किया जा रहा है। यह समय और न्याय की मांग है कि उत्तर भारतीयों को पलायन के लिए मजबूर करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई हो, क्योंकि उनके पलायन ने गुजरात के साथ-साथ देश को भी शर्मसार करने का काम किया है।

यह पहली बार नहीं जब देश के एक हिस्से के लोगों को किसी अन्य हिस्से में अवांछित बताकर हुए उन्हें इतना खौफजदा किया गया कि वे वहां से पलायन करने के लिए विवश हुए हों। देश की एकता-अखंडता को क्षति पहुंचाने वाले ऐसे कृत्य होते ही रहते हैैं। दुर्भाग्य से उत्तर भारतीय अक्सर ही ऐसे कृत्य का शिकार बनते हैैं। उनके साथ अभी जैसा गुजरात में घटित हुआ वैसा ही महाराष्ट्र में रह-रह कर घटित होता रहा है। वे पूर्वोत्तर में भी कई बार वहां के अराजक तत्वों की नफरत के शिकार हो चुके हैैं।

उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा आदि राज्यों के लोग एक बड़ी संख्या में दूसरे राज्यों में रोजी-रोटी के लिए काम करने जाते हैैं तो इसका यह मतलब नहीं कि वे दीन-हीन हैैं। ये तो वे मेहनतकश लोग हैैं जो संबंधित राज्यों की औद्योगिक-व्यापारिक गतिविधियों को गति देते हैैं। यह खेद की बात है कि जब ऐसे लोगों के हितों की चिंता की जानी चाहिए तब उनकी रोजी-रोटी और उनके मान-सम्मान से खिलवाड़ का एक और प्रसंग सामने आया। ऐसे प्रसंग भारतीयता को क्षति पहुंचाने के साथ भारतीय समाज को अपयश का ही पात्र बनाते हैैं।