पाकिस्तान में सबसे बड़े दल के नेता के तौर पर उभरे इमरान खान ने पीएम पद हासिल करने के पहले प्रधानमंत्री की तरह से अपनी प्राथमिकताएं गिनाते समय भारत का जिक्र जिस तरह सबसे बाद में किया उससे उनके इरादों के बारे में काफी कुछ संकेत मिलता है। नि:संदेह उन्होंने भारत से दोस्ताना संबंध रखने की बात कही, लेकिन लगे हाथ कश्मीर का जिक्र करना नहीं भूले। अगर कश्मीर मसला उनकी प्राथमिकता में बना रहता है तो इसका अर्थ है कि वह पाकिस्तानी सेना और उसकी बदनाम खुफिया एजेंसी की नीति पर ही चलना पसंद करेंगे। इसका यह भी मतलब है कि वह अलगाववाद और आतंकवाद से जूझते अपने लोगों का ध्यान बंटाने के लिए कश्मीर का राग अलापते रहेंगे।

हालांकि कश्मीर को भुनाने के लिए चुनाव मैदान में उतरे अतिवादी तत्वों को पाकिस्तान की जनता ने कोई भाव नहीं दिया, लेकिन शायद इमरान खान इसी मुद्दे को तूल देने में अपनी भलाई समझ रहे हैं। ऐसा करके तो वह आम जनता की आकांक्षाओं की अनदेखी करने का ही काम करेंगे, जो कश्मीर मामले से अपना पिंड छुड़ाना चाह रही है। इमरान खान परंपरागत राजनीति के दायरे से बाहर के पहले ऐसे नेता हैं जो प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं। भारत समेत अन्य देशों में उनकी छवि एक जूझारु क्रिकेटर की रही है, लेकिन उनकी एक छवि तालिबान समर्थक नेता की भी है। क्रिकेट खेलते वक्त उन्होंने भारत से जो रिश्ते कायम किए उसके चलते तमाम भारतीय खुद को उनसे परिचित पाते हैं, लेकिन इसकी अनदेखी कैसे कर दी जाए कि चुनाव के दौरान उन्होंने भारत विरोध को न केवल हवा दी, बल्कि उन तत्वों को गले भी लगाया जो भारत से बैर बढ़ाने के लिए जाने जाते हैं? चिंता की बात यह है कि इनमें कई आतंकियों के समर्थक या फिर आतंकी हैं। इससे भी अधिक चिंताजनक यह है कि वह सेना की गोद में बैठे दिख रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय मीडिया के साथ खुद तमाम पाकिस्तानी भी यह मान रहे हैं कि सेना इमरान को प्रधानमंत्री पद पर देखना चाह रही थी और इसके लिए कुछ भी करने को तैयार थी। पाकिस्तानी सेना ने उनके दल को सबसे बड़े दल के तौर पर उभरने में खुलकर मदद तो की, लेकिन यह भी सुनिश्चित किया कि वह अपने बलबूते प्रधानमंत्री की कुर्सी पर न बैठने पाएं। यह भी सेना ने ही सुनिश्चित किया था कि पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को किसी भी कीमत पर राजनीतिक बढ़त न मिलने पाए। पाकिस्तान इसका ही उदाहरण है कि कैसे किसी देश में चुनाव होने भर से लोकतंत्र की स्थापना नहीं हो जाती। इमरान खान को इसका रंज है कि भारतीय मीडिया ने उन्हें फिल्मी खलनायक की तरह पेश किया, लेकिन वह इस पर गौर नहीं कर रहे कि उनके पास किस्म-किस्म के आतंकी संगठनों और धर्माध समूहों के खिलाफ कहने के लिए कुछ भी नहीं। इसमें दोराय नहीं कि क्रिकेटर से नेता बने इमरान खान के जीवन में एक बड़ा बदलाव आया है, लेकिन उनके नेतृत्व में पाकिस्तान में कोई बुनियादी बदलाव आने के आसार नहीं दिख रहे हैं। यह अच्छा है कि भारत ने उनसे बहुत उम्मीदें नहीं लगा रखी हैं।