सुप्रीम कोर्ट ने यह कटाक्ष करके एक तरह से वायु प्रदूषण को लेकर अपनी गंभीर चिंता ही व्यक्त की कि क्या पराली जलाने से कोरोना वायरस मर जाएगा? एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट को यह टिप्पणी शायद इसलिए करनी पड़ी, क्योंकि पंजाब में पराली यानी फसलों के अवशेष जलाए जाने शुरू हो गए हैं।

इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि उसकी ओर से पंजाब, हरियाणा और दिल्ली सरकार के साथ केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से जवाब मांगा गया है। पता नहीं उनकी ओर से क्या जवाब दिया जाएगा, लेकिन इससे हर कोई अवगत है कि पिछले वर्षो में भी सुप्रीम कोर्ट ने पराली को जलाने से रोकने के लिए तमाम निर्देश दिए, फिर भी नतीजा ढाक के तीन पात वाला ही रहा।

यह घोर निराशाजनक है कि पराली दहन को रोकने के लिए हर स्तर पर प्रयास किए जाने के बाद भी स्थितियां सुधर नहीं रही हैं। हर वर्ष सर्दियों के आगमन के संकेत मिलने के साथ ही दिल्ली और आसपास के इलाके में वायु प्रदूषण के गंभीर रूप लेने का अंदेशा इसीलिए सिर उठा लेता है, क्योंकि पंजाब, हरियाणा और कुछ अन्य राज्यों में पराली जलाने का काम शुरू हो जाता है। यह इस बार भी शुरू हो गया है और वह भी तब, जब हर कोई इससे परिचित है कि वायु प्रदूषण में वृद्धि कोरोना के मरीजों के लिए जानलेवा साबित होगी।

क्या इससे खराब बात और कोई हो सकती है कि जिस महामारी से निपटना मुश्किल हो रहा है, उसे और भयावह रूप देने का काम एक तरह से जानबूझकर किया जा रहा है। वर्ष दर वर्ष यह काम इसीलिए होता चला आ है, क्योंकि जरूरी राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिचय देने से इन्कार किया जा रहा है। राज्य सरकारें किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए पर्याप्त उपाय करने के बजाय अपनी मजबूरी बयान कर अथवा संसाधनों के अभाव का उल्लेख कर कर्तव्य की इतिश्री करना पसंद कर रही हैं।

चूंकि राज्य सरकारें पराली दहन रोकने के मामले में पर्याप्त रुचि नहीं ले रही हैं इसलिए केंद्र सरकार की ओर से उन्हें दिए जाने वाले आदेश-निर्देश भी निष्प्रभावी ही साबित हो रहे हैं। उचित यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट समस्या के मूल कारणों को न केवल समझे, बल्कि उनके निवारण के लिए ठोस निर्देश भी दे। उसे यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उसके निर्देशों पर सही तरह अमल हो। नि:संदेह यह भी आवश्यक है कि सुप्रीम कोर्ट केवल दिल्ली और आसपास के इलाके के ही प्रदूषण की चिंता न करे, क्योंकि सर्दी बढ़ने के साथ ही उत्तर भारत का एक बड़ा हिस्सा वायु प्रदूषण की चपेट में आ जाता है।