विजयदशमी (VijayaDashmi) उत्सव पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के नागपुर स्थित मुख्यालय में संघ प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने इस पर बल देकर बिल्कुल सही किया कि अल्पसंख्यकों के लिए कहीं कोई खतरा नहीं है- न तो हिंदुओं से और न ही उनके संगठन यानी आरएसएस से। ऐसा कोई वक्तव्य इसलिए आवश्यक था, क्योंकि पिछले कुछ समय से यह वातावरण बनाया जा रहा है कि मुस्लिम असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।

चंद दिनों पहले इस बात को मुस्लिम समाज के पांच प्रमुख लोगों (Five Eminent Muslim Personalities) ने तब दोहराया भी था, जब उन्होंने दिल्ली में संघ प्रमुख से भेंट की थी। तबसे इन लोगों की ओर से यह बार-बार रेखांकित किया जा रहा है कि संघ प्रमुख से उनकी मुलाकात का मुख्य उद्देश्य उन्हें अपनी इस चिंता से अवगत कराना था कि मुस्लिम समाज खुद को असुरक्षा में पा रहा है। यह और कुछ नहीं इस तरह का एक काल्पनिक भय पैदा करने की कोशिश है कि मुस्लिम समाज खतरे में है।

क्या यह विचित्र नहीं कि देश के अन्य अल्पसंख्यक समूहों की ओर से तो ऐसी कहीं कोई बात सुनने को नहीं मिलती कि वे स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, लेकिन सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय यानी मुस्लिम समाज के कई नेता, धर्मगुरु और अन्य प्रतिनिधि यही सिद्ध करने में जुटे हुए हैं कि मुसलमान डरा हुआ है। यह न केवल एक किस्म की शरारत है, बल्कि सच से मुंह मोड़ने की कोशिश भी।

मुस्लिम अपने को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, यह बात इसलिए गले नहीं उतर सकती, क्योंकि हाल के समय में देश ने यह अच्छी तरह देखा है कि नागरिकता संशोधन कानून, हिजाब मामले, ज्ञानवापी मसले और नुपुर शर्मा प्रकरण पर मुस्लिम समाज के एक वर्ग की ओर से कैसी उग्र और हिंसक प्रतिक्रिया व्यक्त की गई। क्या यह प्रतिक्रिया ऐसे लोगों की हो सकती है, जो खुद को असुरक्षित मान रहे हों? इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि सभ्य समाज को चिंतित करने वाली इस प्रतिक्रिया पर वे सब लोग मौन ही अधिक रहे, जो यह प्रचारित करने में लगे हुए हैं कि मुसलमान तो डरे हुए हैं।

आरएसएस के पदाधिकारियों और मुस्लिम समाज के प्रतिनिधियों के बीच संवाद में कोई हर्ज नहीं, लेकिन वह इस झूठ के सहारे नहीं होना चाहिए कि मुसलमान भयभीत हैं या उनकी अनदेखी हो रही है। यह अच्छा हुआ कि संघ प्रमुख ने इस खोखली धारणा को खारिज कर दिया कि मुसलमान असुरक्षा के साये में जी रहे हैं, क्योंकि सच को किनारे रखकर किया जाना वाला कोई भी संवाद समस्याओं के समाधान में सहायक नहीं हो सकता। एक तो इतने बड़े समुदाय की अनदेखी संभव नहीं और दूसरे, तथ्य यही बताते हैं कि मुस्लिम समुदाय के कल्याण के लिए केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से कई उपाय किए जा रहे हैं। मुस्लिम समाज उनसे लाभान्वित भी हो रहा है।