झारखंड (Jharkhand) के तीन कांग्रेस विधायकों (Congress MLAs) की करीब 50 लाख रुपये के साथ हावड़ा में गिरफ्तारी की गुत्थी सुलझी भी नहीं थी कि रांची के एक चर्चित अधिवक्ता राजीव कुमार को इतनी ही राशि के साथ कोलकाता में गिरफ्तार कर लिया गया। फिलहाल इन गिरफ्तारियों के मामले में किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता। जैसे यह समझना कठिन है कि कांग्रेस के तीन विधायक इतनी रकम के साथ बंगाल में क्या कर रहे थे, उसी तरह यह प्रश्न भी उठता है कि अधिवक्ता राजीव कुमार जिस आरोप में गिरफ्तार किए गए, वह किसी षड्यंत्र का हिस्सा तो नहीं?

यह प्रश्न इसलिए, क्योंकि जनहित याचिकाएं दायर करने वाले राजीव कुमार ने कई ऐसी याचिकाएं रांची उच्च न्यायालय में दायर कर रखी हैं, जो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) की मुश्किलें बढ़ा रही हैं। एक ओर वह खनन घोटाले के गंभीर आरोपों से दो-चार हैं और दूसरी ओर जिस कांग्रेस के समर्थन से सत्ता में हैं, उससे उनकी खटपट जारी है।

जो कांग्रेस विधायक बंगाल में गिरफ्तार किए गए, उनमें से एक इरफान अंसारी हैं, जिन पर यह आरोप लगता रहा है कि वह हेमंत सोरेन सरकार को गिराने का जतन करते रहे हैं। उनके साथ दो अन्य विधायकों की गिरफ्तारी पर कांग्रेस ने भाजपा पर यह आरोप मढ़ने में देर नहीं की कि उसके द्वारा धनबल के जरिये झारखंड सरकार को गिराने की कोशिश की जा रही है, लेकिन फिलहाल तो उसे यह बताना चाहिए कि उसके तीन विधायक भारी-भरकम राशि के साथ बंगाल में क्या कर रहे थे?

कांग्रेस कुछ भी दावा करे, इस तथ्य की अनदेखी नहीं की जा सकती कि बंगाल भाजपा शासित राज्य नहीं है। क्या कांग्रेस यह कहना चाहती है कि बंगाल पुलिस ने भाजपा अथवा केंद्र सरकार के इशारे पर उसके विधायकों को गिरफ्तार किया? कांग्रेस इसकी भी अनदेखी नहीं कर सकती कि अभी हाल में संपन्न राष्ट्रपति चुनाव में झारखंड के कई कांग्रेसी विधायकों ने द्रौपदी मुर्मु के पक्ष में क्रास वोटिंग की थी। इसका कोई राजनीतिक मतलब भले न हो, लेकिन इसमें संदेह नहीं कि कांग्रेस के तीन विधायकों के बाद रांची के अधिवक्ता की बंगाल में गिरफ्तारी का सच किसी निष्पक्ष जांच से ही सामने आ सकता है।

कहना कठिन है कि इन दोनों मामलों की जांच सही तरह से हो सकेगी, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि राजनीति भ्रष्टाचार का पर्याय बनी हुई है। यह भ्रष्टाचार इसलिए बेलगाम दिखता है, क्योंकि भ्रष्ट नेताओं का साथ नौकरशाह भी दे रहे हैं। इसके साथ ही एक समस्या यह भी है कि राजनीतिक भ्रष्टाचार के मामलों की जांच की गति अत्यंत धीमी है और इसमें एक बड़ी भूमिका सुस्त न्यायिक प्रक्रिया की भी है।