प्रतिस्पर्धा के इस युग में झारखंड में भी लोगों की आकांक्षाएं असीमित हो गई हैं। आगे रहने की होड़ न जाने क्या-क्या करा रही है। मानव प्रवृत्ति में बदलाव के कारण अपराध की संख्या में भी लगातार वृद्धि हो रही है। बात करें देश की कोयला राजधानी धनबाद की, तो यह भी अपराध से अछूता नहीं। अवैध कोयला कारोबार तो लुभाता ही है, वर्चस्व की जंग को लेकर भी संघर्ष कम नहीं हो रहा। टकराव को देखते हुए और धनबाद की पुलिस को अपराधियों से आगे रखने के लिए झारखंड सरकार ने पांच साल पहले जिले में एसपी का पद अपग्रेड कर सीनियर एसपी का पद सृजित किया था। साथ ही भौगोलिक परिस्थितियों के कारण उपजे अपराध की रोकथाम के लिए सिटी एसपी और ग्रामीण एसपी को अलग-अलग जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इसके पीछे मानसिकता थी कि जिले के कोयला क्षेत्र में अलग तरह का अपराध पनप रहा है, जिस पर अंकुश लग सके।

नक्सलियों के बढ़ते प्रभाव और हत्या आदि पर भी रोक लगे, मगर अफसोस कि सारा ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो गया है। हाल के दिनों में तो धनबाद में अपराधी बेखौफ हो गए हैं। ताबड़तोड़ आपराधिक घटनाएं हो रही हैं, मगर चिंतित करने वाली बात ये है कि अभी जिले में न एसएसपी हैं, और न ही ग्रामीण एसपी। बेशक अपराधी इसका फायदा उठा रहे हैं। कुछ ही दिन पहले भाजपा नेता को अपराधियों ने शहर में दिनदहाड़े मार डाला था। सीसीटीवी कैमरे में चार अपराधियों की तस्वीर कैद भी हुई, मगर अब तक पुलिस के हाथ खाली हैं। इसके बाद डेको आउटर्सोसिंग कंपनी पर वर्चस्व को लेकर पुलिस के सामने ही बमबाजी व फायरिंग हुई। बेनीडीह डेको आउटर्सोसिंग प्रोजेक्ट में अपराधियों ने पोकलेन मशीन को जला दिया। शहर और शहर के बाहर जो घटनाएं हुईं, वे निश्चित रूप से विधि-व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रही हैं, लेकिन माना जा सकता है कि दो बड़े पुलिस अधिकारियों के नहीं रहने से विभाग की कार्यशैली पर असर जरूर पड़ रहा है। पुलिसिया जांच शिथिल पड़ रही है। इस पर ध्यान देना होगा। आखिर कब तक झारखंड का यह महत्वपूर्ण जिला खौफ में रहेगा।