राज्य में फायर सर्विसेज वीक शुरू होते ही लोगों को जागरूक करने की कवायद शुरू हो गई है, लेकिन जम्मू संभाग के सीमावर्ती क्षेत्र में हजारों एकड़ में पककर खड़ी गेहूं की फसल को आग से बचाने के लिए कई तहसील मुख्यालयों में मात्र एक ही फायर ब्रिगेड की गाड़ी होने से किसान सहमे हुए हैं। कारण, हर साल सैकड़ों एकड़ फसल आग की भेंट चढ़ जाती है। इसका एक बड़ा कारण किसानों की खेतों के ऊपर से गुजर रहे बिजली के ढीले तार हैं। तेज हवाओं से ये तारें आपस में टकराते हैं, जिससे चिंगारी पैदा होने पर गेहूं की पकी फसल चंद मिनटों में राख हो जाती है। विडंबना यह है कि कुछ तहसीलों में तो एक भी फायर टेंडर नहीं है, जिससे किसानों की मेहनत पर पानी फिर सकता है। हद तो यह है कि जम्मू के सीमावर्ती क्षेत्रों आरएसपुरा, बिश्नाह, अरनिया और सांबा में पिछले वर्ष कई स्थानों पर गेहूं की फसलें जल जाने की घटनाएं सामने आईं, लेकिन सरकार ने इससे किसानों को होने वाले नुकसान के बारे में तनिक नहीं सोचा। हर साल जम्मू संभाग में करोड़ों रुपये की फसल आग की भेंट चढ़ जाती है। अब जबकि गेहूं की फसल तैयार हो चुकी है और किसान फसल की कटाई में लगा हुआ है।

ऐसे में फायर इमरजेंसी सर्विसेज विभाग के लिए यह किसी चुनौती से कम नहीं होगा। सीमांत क्षेत्रों में जब भी आग लगने की घटना सामने आती है तो जम्मू के औद्योगिक क्षेत्र गंग्याल और बड़ी ब्राह्मण इलाके से फायर ब्रिगेड की गाड़ियां पहुंचती हैं, लेकिन तब तक फसल तबाह हो चुकी होती है। अगर फायर ब्रिगेड की गाड़ियां तहसील मुख्यालयों में तैनात हो जाएं, तो फसलों को बचाया जा सकता है। विभाग को चाहिए कि फायर सर्विसेज वीक को किसानों को जागरूकता के रूप में मनाया जाए। आग लगने की सूरत में फायर ब्रिगेड की गाड़ियों का इंतजार करने से बेहतर है कि किसान एकजुट होकर हरी झाड़ियों की झाड़ू बनाकर आग को पीटे तो आग पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। फायर ब्रिगेड की गाड़ियों को तहसील व ब्लॉक स्तर पर तैनात करना जरूरी है।

[ स्थानीय संपादकीय: जम्मू-कश्मीर ]