तमाम व्यवधान, लंबी जिद्दोजहद और तकनीकी खामियों में सुधार करते हुए फिलहाल प्रदेश में इंटर स्टेट के साथ इंट्रा स्टेट ई-वे बिल अब लगभग पूरी तरह से प्रभावी हो गया है। इसी के साथ वाणिच्य कर विभाग ने प्रवर्तन कार्य के तहत जांच भी बढ़ा दी है। यानि प्रदेश के बाहर या प्रदेश के भीतर भी ई-वे बिल के बिना काम नहीं चलने वाला है। विरोध या नानुकुर का दौर भी समाप्त हो चुका है। ऐसे में जाहिर सी बात है कि जरा सी लापरवाही या घपलेबाजी का प्रयास महंगा पड़ सकता है। ई-वे बिल न होने पर जुर्माना अदा करने के लिए व्यापारियों को एक हफ्ते का समय दिया है। साथ ही चेतावनी भी कि तय मियाद में जुर्माना अदा न हुआ तो माल जब्त करके नीलाम भी किया जा सकता है।

हालांकि सुविधा दी गई है कि ई-वे बिल जेनरेट करने के बाद यदि माल का परिवहन नहीं किया जाता या ई-वे बिल में दिए गए विवरण के मुताबिक नहीं किया जाता तो इसे 24 घंटों के भीतर कैंसिल भी किया जा सकता है। इसमें ध्यान देने की बात यह है कि यदि किसी सक्षम अधिकारी द्वारा ई-वे बिल को जांचा जा चुका है तो इसे कैंसिल भी नहीं किया जा सकेगा। ऐसे और भी कई प्रावधान हैं जिन्हें हर कारोबारी को समझ लेना चाहिए। यहां इतनी चर्चा का आशय महज यह बताना है कि व्यापार तो अब भी लगभग परंपरागत ढंग से ही हो रहा है, लेकिन इसमें कुछ नए तौर-तरीके भी जुड़ गए हैं। खासतौर से कराधान का। यदि इस नए तौर तरीके के हर कदम का पूरा-पूरा पालन किया जाए तो उत्पादन स्थल से लेकर अंतिम गंतव्य उपभोक्ता तक माल पहुंचने का पूरा ब्योरा तंत्र के पास उपलब्ध होगा। ऐसे में गड़बड़ी किस स्तर पर की गई इसका पता लगाना मुश्किल काम नहीं है। यह जानते हुए भी कुछ लोग जीएसटी से बचने का शार्टकट तलाशने से बाज नहीं आ रहे हैं। बेहतर तो यही है कि जीएसटी या ई-वे बिल से जितनी जल्दी तालमेल बिठा लिया जाए। क्योंकि इससे बचने का प्रयास या किसी तरह की गड़बड़ी अंतत: नुकसानदेह ही साबित होगी।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश ]