पाकिस्तान की एक अदालत की ओर से आतंकी सरगना हाफिज सईद को सुनाई गई सजा पर यह संदेह होना स्वाभाविक है कि कहीं यह दुनिया की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश तो नहीं? इस संदेह का एक बड़ा कारण यह है कि चंद दिनों बाद ही अंतरराष्ट्रीय संगठन फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानी एफएटीएफ इस पर विचार करने जा रहा है कि पाकिस्तान ने अपने यहां के आतंकी ढांचे पर लगाम लगाने के लिए उचित कदम उठाए या नहीं?

चूंकि पाकिस्तान पर यह खतरा मंडरा रहा है कि एफएटीएफ की ओर से उसे काली सूची में डाला जा सकता है इसलिए हैरानी नहीं कि विश्व समुदाय के साथ इस संगठन को झांसा देने के इरादे से ही हाफिज सईद को आनन-फानन सजा सुना दी गई हो।

पाकिस्तान के इरादों को लेकर संदेह उभरने का दूसरा बड़ा कारण यह है कि हाफिज सईद के खिलाफ मुंबई के आतंकी हमले के मामले में कहीं कोई कार्रवाई होती नहीं दिखती। इसी तरह पठानकोट एयरबेस पर हुए आतंकी हमले के मामले में भी पाकिस्तान कुछ करता हुआ नहीं दिख रहा है।

आखिर इस नतीजे पर न पहुंचा जाए तो क्या किया जाए कि पाकिस्तान आतंकवाद से निपटने का दिखावा मात्र कर रहा है? भारत ने आतंकवाद पर लगाम लगाने के मामले में पाकिस्तान की खोखली प्रतिबद्धता को रेखांकित कर सही किया, लेकिन उसे केवल इतने तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए।

भारत को इसे लेकर सतर्क रहना होगा कि पाकिस्तान एफएटीएफ को चकमा देने में समर्थ न हो जाए। इसकी आशंका इसलिए है, क्योंकि इस संगठन के कुछ देश इसके लिए सक्रिय हैं कि पाकिस्तान काली सूची में न आने पाए। भारत इसकी भी अनदेखी नहीं कर सकता कि अमेरिका ने हाफिज सईद की सजा का स्वागत किया है।

भले ही अमेरिका को यह दिख रहा हो कि पाकिस्तान अपने यहां के आतंकी ढांचे को खत्म करने को लेकर गंभीर है, लेकिन सच यही है कि वह इसका ढोंग करने में लगा हुआ है। पाकिस्तान न केवल लश्कर, जैश सरीखे आंतकी संगठनों को पाल-पोस रहा है, बल्कि तालिबान और हक्कानी नेटवर्क सरीखे उन आतंकी गुटों को भी पनाह दे रहा है जो अफगानिस्तान के लिए खतरा बने हुए हैं।

यदि अफगानिस्तान से अपनी सेनाओं को निकालने की जल्दबाजी में अमेरिका इस तथ्य की अनदेखी करने को तैयार है तो इसका मतलब है कि वह सच्चाई से मुंह मोड़ रहा है। जो भी हो, विश्व समुदाय को इस पर गौर करना चाहिए कि पाकिस्तान की जो न्यायपालिका हाफिज सईद के हाल के मामलों को लेकर सक्रियता दिखा सकती है वह 12 साल पुराने मुंबई हमले के मामले में कुंडली मारे क्यों बैठी है?