मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की यह बात सौ फीसद खरी है कि यदि सरकार आपराधिक मामलों के आरोपितों को सजा नहीं दिला पाती तो कानून के राज का क्या मतलब है? उन्होंने अपने इस कथन के जरिए लोक अभियोजकों की भूमिका को कठघरे में खड़ा किया। यह देखने की बात है कि मुख्यमंत्री की इस नसीहत का कितना असर होता है। दरअसल, लोक अभियोजकों की नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाए जाने की जरूरत है। मौजूदा प्रक्रिया की सतह पर ही कई खामियां नजर आती हैं जिनका प्रभाव अंतत: न्याय प्रणाली पर पड़ता है। मौजूदा प्रक्रिया में लोक अभियोजक राजनीतिक आधार पर नियुक्त किए जाते हैं। जिस दल की सरकार होती है वह अपवाद छोड़कर अपनी विचारधारा, बड़े नेताओं से नजदीकी और सिफारिशों के आधार पर लोक अभियोजकों की नियुक्ति करती है। जाहिर है कि इस प्रक्रिया में मेरिट के लिए कोई जगह नहीं बनती। इस तरह मनोनीत लोक अभियोजकों में पेशेवर कार्यशैली का अभाव रहता है। इसी का परिणाम है कि ज्यादातर मामलों में लचर पैरवी के चलते आरोपित बरी हो जाते हैं, जिस पर मुख्यमंत्री ने चिंता जताई है। यह परिदृश्य बदलने के लिए लोक अभियोजकों की नियुक्ति प्रक्रिया में व्यापक बदलाव की जरूरत है। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि जिन अधिवक्ताओं को लोक अभियोजक नियुक्त किया जा रहा है, वे योग्य और पेशेवर हों। नियुक्ति के लिए यदि लिखित परीक्षा न हो तो कम से कम साक्षात्कार तो होना ही चाहिए। साक्षात्कार के लिए जो पैनल बने, उसमें न्यायिक विशेषज्ञ ही रखे जाने चाहिए। यदि ऐसी पारदर्शी प्रणाली अपनाकर लोक अभियोजक नियुक्त किए जाएं तो कोई वजह नहीं कि न्यायालय में सरकार का पक्ष जोरदार ढंग से न रखा जा सके। इसके बाद आपराधिक मामलों में आरोपितों को सजा मिलने की दर स्वत: बढ़ जाएगी। बहरहाल, यह सरकार को तय करना है कि मौजूदा प्रणाली में बदलाव किया जाए या नहीं। इसका इंतजार किए बगैर लोक अभियोजकों को मुख्यमंत्री की नसीहत मानते हुए अपनी कार्यशैली में बदलाव लाना चाहिए। आपराधिक मामलों में आरोपित व्यक्ति यदि न्यायालय में लचर पैरवी के कारण बरी हो जाते हैं तो यह समाज के प्रति 'अपराध' है। यदि अपराधियों को कड़ी सजा नहीं मिलती तो समाज में अपराधियों और दबंगों का वर्चस्व कायम हो जाएगा।
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कानून का राज राजनीतिक इच्छाशक्ति, पुलिस की धमक और न्याय प्रणाली की धार के बल पर चलता है। यदि अपराधियों के दिल में कानून का खौफ खत्म हो जाए तो समाज में अराजकता स्थापित होने में देर नहीं लगेगी।

[ स्थानीय संपादकीय: बिहार ]