यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पंजाब के शिक्षकों को अपनी मांगों के लिए सड़क पर धरना-प्रदर्शन करना पड़ रहा है। सरकार को इस पर गौर करना चाहिए।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पंजाब में एक बार फिर शिक्षकों को अपनी मांगों को मनवाने के लिए सड़क पर उतरना पड़ा। इससे भी दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि रविवार को लुधियाना में प्रदर्शन कर रहे इन शिक्षकों पर पुलिस ने लाठियां बरसा दीं। प्रदेश भर से करीब पंद्रह हजार शिक्षक लुधियाना-चंडीगढ़ राजमार्ग पर एकत्रित हुए थे। ये शिक्षक प्रमुख रूप से बेसिक की बजाए फुल ग्रेड पर नियमित करने, हर प्राइमरी स्कूल में पांच अध्यापक व दो प्री प्राइमरी अध्यापकों की नियुक्ति, तबादला नीति बदलने, रिक्त पद सीधी भर्ती से भरने की मांगों को लेकर पंजाब सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। जिस तरह की मांगें हैं, उन पर विचार किया जाना चाहिए, क्योंकि यह बात किसी से छिपी नहीं है कि शिक्षकों पर किस कदर कार्य का दबाव है।

शिक्षण कार्य के रूप में उनके ऊपर प्रदेश के भविष्य के निर्माण की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी तो है ही, साथ ही उन्हें वोट बनाने व जनगणना जैसे विभिन्न कार्य भी करने पड़ते हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि उनकी मांगों पर ध्यान दिया जाए। यह हैरत की बात है कि प्रदेश सरकार ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और अंतत: शिक्षकों को सड़क पर उतरना पड़ा। हालांकि शिक्षकों को भी चाहिए कि वे संयम बरतें। शिक्षक को समाज में गुरु का दर्जा प्राप्त है और विद्यार्थी उन्हें अपना आदर्श मानते हैं, अत: उनका आचरण भी वैसा ही होना चाहिए। यह ठीक है कि अपनी मांगों के लिए आवाज उठाने का हक सबको है, लेकिन यदि यह आवाज उचित मंच पर उठाई जाए तो ही उचित है। सड़क पर उतर कर यातायात अवरुद्ध करने से आमजन, विद्यार्थी, मरीज सभी को परेशानी उठानी पड़ती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि शिक्षक संयम बरतेंगे और सरकार उनकी मांगों पर विचार कर उचित कदम उठाएगी।

[ स्थानीय संपादकीय: पंजाब ]