यह अच्छा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए विभिन्न उच्च न्यायालयों में दायर याचिकाओं को अपने पास स्थानांतरित कर लिया। अब इन सभी याचिकाओं की सुनवाई वह स्वयं करेगा। इन याचिकाओं के संदर्भ में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि उसकी ओर से अगले तीन माह में सोशल मीडिया संबंधी नियम तैयार कर लिए जाएंगे। इन नियमों के बारे में अभी कुछ कहना कठिन है, लेकिन ऐसे सवाल उठ खड़े होना स्वाभाविक है कि आखिर सरकार को ऐसे कोई नियम क्यों तैयार करने चाहिए? यह अंदेशा भी प्रकट किया जा रहा है कि कहीं नियम बनाकर सरकार सोशल मीडिया की निगरानी तो नहीं करने लगेगी?

ऐसे सवाल और संदेह के बीच इस सच की अनदेखी नहीं की जा सकती कि पूरी दुनिया के लिए सोशल मीडिया का दुरुपयोग एक गंभीर समस्या बना गया है। यह समस्या इसलिए और विकट हो गई है, क्योंकि सोशल मीडिया कंपनियां अपने प्लेटफॉर्म का दुरुपयोग रोकने के लिए कोई कारगर व्यवस्था नहीं कर रही हैैं। जब उनसे इसकी अपेक्षा की जाती है तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बाधित करने का शोर मचने लगता है। यह शोर सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंच सकता है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि सोशल मीडिया के नियमन की कोई जरूरत नहीं। सच तो यह है कि इसकी जरूरत कहीं अधिक बढ़ गई है। इसका कारण यही है कि सोशल मीडिया का दुरुपयोग सभ्य समाज के समक्ष गंभीर संकट पैदा कर रहा है।

सरकारों के साथ उसकी एजेंसियों के लिए सोशल मीडिया का दुरुपयोग रोकना कठिन हो रहा है। सरकारी एजेंसियों की ओर से सोशल मीडिया के बेजा इस्तेमाल को रोकने के जो थोड़े-बहुत उपाय किए गए हैैं वे इसलिए बेअसर साबित हो रहे हैैं, क्योंकि फर्जी एवं अधकचरी खबरों के जरिये दुष्प्रचार अभियान चलाने और सामाजिक ताने-बाने को क्षति पहुंचाने अथवा किसी को बदनाम करने वाला एक संगठित उद्योग खड़ा हो चुका है। यह एक ऐसा उद्योग है जो लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरा बन रहा है।

आखिर कौन भूल सकता है कैंब्रिज एनालिटिका नामक कंपनी की उस कारस्तानी को जिसने फेसबुक का डाटा चोरी कर कई देशों के चुनावों को प्रभावित करने की कोशिश की थी? ऐसे व्यापक छल-कपट को देखते हुए यह आशा करना व्यर्थ है कि सरकारें सोशल मीडिया का नियमन करने के कोई उपाय न करें। नियमन की जरूरत इसलिए और बढ़ गई है, क्योंकि सोशल मीडिया कंपनियां अपनी जिम्मेदारी समझने के लिए तैयार नहीं। इसकी गिनती करना कठिन है कि फेसबुक सरीखी नामी कंपनी ने डाटा चोरी के मामले में कितनी बार मिथ्या जानकारी देकर लोगों को भरमाने की कोशिश की है।