सुप्रीम कोर्ट ने निर्वाचन आयोग को ऐसे तौर-तरीके तैयार करने के निर्देश देकर राजनीति के अपराधीकरण को रोकने की दिशा में एक बड़ी पहल की है जिससे आपराधिक अतीत वालों को चुनाव लड़ने से रोका जा सके। यह पहल अंजाम तक पहुंचनी ही चाहिए, क्योंकि तमाम उपायों के बावजूद राजनीति में आपराधिक इतिहास वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। इसके चलते भारतीय लोकतंत्र को गंभीर क्षति पहुंच रही है। जब आपराधिक प्रवृत्ति वाले विधानमंडलों में पहुंचते हैैं तो वे केवल इन सदनों की गरिमा ही नहीं गिराते, बल्कि कानून एवं व्यवस्था के साथ लोकतंत्र का उपहास भी उड़ाते हैैं।

इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं हो सकती कि जिन पर कानून एवं व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने के संगीन आरोप हों वही कानून बनाने का काम करें। आखिर यह स्थिति लोकतंत्र से खिलवाड़ नहीं तो और क्या है? यह अच्छा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट ने इस बात को महसूस किया कि नामांकन दाखिल करते समय अपने आपराधिक मामलों का विवरण देने की बाध्यता से बात बन नहीं रही है। कटु सच्चाई यही है कि ऐसे लोग चुनाव जीतने में समर्थ हैैं जो आपराधिक मामलों का सामना कर रहे होते हैैं। ऐसे लोग एक तो यह प्रचारित करने में सक्षम रहते हैैं कि उन पर चल रहे मामले बदले की राजनीति का नतीजा हैैं और दूसरे छल-छद्म से जाति-संप्रदाय का सहारा लेने में कामयाब हो जाते हैैं।

निर्वाचन आयोग न जाने कब से यह कह रहा है कि कम से कम उन्हें तो चुनाव लड़ने से रोका ही जाए जिनके खिलाफ ऐसे मामलों में आरोप पत्र दायर हो चुका हो जिनमें पांच साल से अधिक की सजा हो सकती है। दुर्भाग्य से यह आड़ लेकर इस सुझाव की अनदेखी हो रही है कि दोष सिद्ध न होने तक व्यक्ति को निर्दोष ही माना जाना चाहिए। यह आड़ तब ली जा रही है जब हर कोई इस सच से अवगत हैै कि रसूख वाले लोग अपने मामलों की अदालती प्रक्रिया को किस तरह लंबा खींचने में कामयाब रहते हैैं? राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के जो अनेक उपाय निर्वाचन आयोग समय-समय पर रेखांकित करता रहा है उन्हें दैनिक जागरण अपने जन जागरण अभियान के तहत जनता तक पहुंचाता रहा है।

आम लोग वही चाहते हैैं जो निर्वाचन आयोग चाहता है। चूंकि देश का जनमत राजनीति के अपराधीकरण से आजिज आ चुका है इसलिए यह अपेक्षित ही नहीं आवश्यक भी है कि जनता की आकांक्षाओं की पूर्ति हो। आपराधिक तत्वों को चुनाव प्रक्रिया से इसलिए हर हाल में दूर किया जाना चाहिए, क्योंकि ऐसा करके ही लोकतंत्र के प्रति आम आदमी की आस्था को अक्षुण्ण बनाए रखा जा सकता है।