किसानों के आंदोलन के सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और किसान संगठनों के प्रतिनिधियों की भागीदारी वाली समिति गठित करने की जो पहल की, उसका कोई सकारात्मक परिणाम निकलने की उम्मीद कम ही है। इसका कारण कुछ किसान संगठनों का अड़ियल रवैया है। वे ऐसा व्यवहार कर रहे हैं जैसे समस्या का समाधान निकालने की सारी जिम्मेदारी केवल सरकार की है और उनका काम केवल नित नई मांगें पेश करना है। दिल्ली में डेरा डाल चुके किसान संगठन पहले नए कृषि कानूनों में कुछ बदलाव और न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की व्यवस्था को सुदृढ़ करने की मांग कर रहे थे, लेकिन सरकार से बातचीत के बाद वे इस पर अड़ गए कि तीनों नए कृषि कानूनों को रद किया जाए। यह हठधर्मिता के अलावा और कुछ नहीं।

विडंबना यह है कि किसान संगठनों का हठधर्मी रवैया बढ़ता ही जा रहा है। सरकार से वार्ता कर रहे कुछ किसान संगठन अब इस पर आपत्ति जता रहे हैं कि अन्य किसान संगठनों से बात क्यों की जा रही है? यह विचित्र आपत्ति जताने वालों में कुछ स्वयंभू और संदिग्ध आचरण वाले किसान नेता हैं।

बेहतर होगा कि सुप्रीम कोर्ट यह देखे कि कुछ किसान संगठन किस तरह अतार्किक रवैया अपनाए हुए हैं। किसान संगठनों के ऐसे रवैये को देखते हुए उसे ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे सरकार पर अनुचित दबाव डालने की कोशिश करने और मनमानी का परिचय देने वाले तत्वों का मनोबल बढ़े। दिल्ली-एनसीआर की नाक में दम करने वाले शाहीन बाग धरने के मामले में यह गलती की जा चुकी है। सुप्रीम कोर्ट को उन किसान संगठनों को बिल्कुल भी बल नहीं देना चाहिए जिनका उद्देश्य किसानों की समस्याओं को सुलझाने के बजाय मोदी सरकार को किसी भी तरह नीचा दिखाना और दिल्ली-एनसीआर की जनता को तंग करना है। सुप्रीम कोर्ट को यह भी देखना चाहिए कि जैसे नए कृषि कानून बनाए गए हैं वैसे कानून निर्मित करने की पहल बीते लगभग डेढ़़-दो दशक से हो रही थी और कांग्रेस समेत अन्य अनेक राजनीतिक दलों ने समय-समय पर वही सब करने की जरूरत भी जताई जिनकी पूर्ति इन नए कृषि कानूनों के माध्यम से की गई है।

इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि समय के साथ कई राज्य सरकारों ने अपने स्तर पर अनाज खरीद में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ाने और अनुबंध खेती को प्रोत्साहित करने का काम किया है। इसी सिलसिले में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने यह ध्यान दिलाते हुए विपक्ष के दोहरे आचरण को उजागर किया है कि 26 राज्यों ने किसानों को खुले बाजार में अपनी उपज बेचने की इजाजत दी है, जिनमें दस से ज्यादा विपक्षी दलों द्वारा शासित हैं।