यह अच्छा हुआ कि नागरिकता कानून को लेकर दिल्ली में बड़े पैमाने पर आगजनी और तोड़फोड़ करने वाले अराजक तत्वों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई के विरोध में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वालों को खाली हाथ लौटना पड़ा। सुप्रीम कोर्ट ने हिंसा थमने पर ही मामले को सुनने की बात कह कर उन लोगों के मंसूबों पर पानी फेर दिया जिन्होंने पहले तो अराजक तत्वों को हिंसा के लिए उकसाया और फिर पुलिस की ज्यादती का रोना रोया। वास्तव में यही काम कई विपक्षी दल भी कर रहे हैैं। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि वे पुलिस की कथित ज्यादती का तो उल्लेख कर रहे हैैं, लेकिन हिंसक तत्वों के खिलाफ एक शब्द भी कहने को तैयार नहीं। यह तब है जब अराजक तत्वों की हिंसा में करीब तीन दर्जन पुलिस कर्मी घायल हुए।

प्रियंका गांधी का धरना हिंसक तत्वों की अराजकता से ध्यान बंटाने की कोशिश का ही हिस्सा अधिक जान पड़ता है। वैसे तो राजनीतिक दल पहले भी लोगों की भावनाओं से खेलकर अपना उल्लू सीधा करते रहे हैैं, लेकिन नागरिकता कानून को लेकर उनकी ओर से जैसा दुष्प्रचार किया जा रहा है उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। सरकार की ओर से बार-बार यह स्पष्ट किया जा रहा है कि इस कानून का देश के नागरिकों से कोई लेना-देना नहीं, फिर भी कई राजनीतिक दल यही माहौल बनाने में लगे हुए हैैं कि यह कानून भारतीय मुसलमानों के खिलाफ है। पश्चिम बंगाल में तो इस दुष्प्रचार के साथ-साथ हिंसक तत्वों को शह भी दी जा रही है। यह भारतीय राजनीति का खतरनाक रूप है।

क्या देश के विभिन्न मुस्लिम शिक्षा संस्थानों के छात्रों को बरगलाकर सड़क पर उतारने वाले यही नहीं साबित कर रहे कि उन्हें बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बहुसंख्यकों की चिंता खाए जा रही है? अगर भारत इन देशों के बहुसंख्यकों के बजाय वहां सताए और अपमानित किए जा रहे अल्पसंख्यकों की परवाह कर रहा है तो इसे लेकर आसमान सिर पर उठाने का क्या मतलब? क्या भारत कोई धर्मशाला है कि जो चाहे यहां बस जाए?

ध्यान रहे कुछ समय पहले म्यांमार के र्रोंहग्याओं को भारत में बसने देने की जिद पकड़ी गई थी? नागरिकता कानून के विरोध में अराजकता फैलाने वाले संविधान की दुहाई तो देने में लगे हुए हैैं, लेकिन इस कानून पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रतीक्षा करने को तैयार नहीं। क्या संविधान और लोकतंत्र की दुहाई देने वाले ऐसा ही भीषण उत्पात मचाते हैैं? इस उत्पात को लेकर केंद्र सरकार को केवल सतर्क ही नहीं रहना होगा, बल्कि नागरिकता कानून के खिलाफ हो रहे दुष्प्रचार की काट भी करनी होगी और वह भी मुस्तैदी से।