यह समझना कठिन है कि विपक्ष ने राज्यसभा में हुड़दंग मचाने के आरोप में निलंबित किए गए 12 सांसदों के समर्थन में संसद से लेकर विजय चौक तक विरोध मार्च निकालकर क्या हासिल किया? इस विरोध मार्च से यदि जनता को कोई संदेश गया तो यही कि विपक्षी दल संसद में अशोभनीय आचरण को जायज ठहराना चाह रहे हैं। यह हास्यास्पद है कि विपक्षी सांसद एक ओर यह जता रहे हैं कि वे संसद में अपनी बात नहीं कह पा रहे हैं और दूसरी ओर वहां जाने के बजाय धरना-प्रदर्शन करना पसंद कर रहे हैं।

ये दोनों काम एक साथ संभव नहीं। विपक्षी सांसद या तो सदनों की बहस में हिस्सा ले सकते हैं या फिर सड़क पर उतरकर नारेबाजी कर सकते हैं। वास्तव में अब इस नतीजे पर पहुंचने के अलावा और कोई उपाय नहीं कि विपक्ष ने राज्यसभा में अशोभनीय हरकतें करने वाले सांसदों के निलंबन को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। इस क्रम में वह यह साबित करने पर भी जोर दे रहा है कि जिन सांसदों ने पिछले सत्र में राज्यसभा सभापति के समक्ष मेजों पर चढ़कर नारेबाजी करने, कागज फाड़ने-फेंकने के साथ सुरक्षा कर्मियों संग धक्का-मुक्की करने का काम किया, उसमें कुछ भी गलत नहीं। क्या इससे शर्मनाक और कुछ हो सकता है कि ऐसे अभद्र आचरण को संसदीय कामकाज का हिस्सा बताने की कोशिश की जाए? यदि ऐसे आचरण की अनदेखी कर दी गई तो फिर संसद का चलना मुश्किल हो जाएगा और उसकी गरिमा की रक्षा कर पाना संभव नहीं होगा।

जब यह प्रमाणित हो गया है कि निलंबित सांसदों ने अपने असंसदीय आचरण से सदन की गरिमा गिराने का काम किया, तब फिर इस तरह के कुतर्को से कौन सहमत होगा कि सरकार संसद में विपक्ष की आवाज दबा रही है? हुड़दंगी सांसदों के निलंबन को लोकतंत्र की हत्या बताने का इसलिए कोई मतलब नहीं, क्योंकि लोकतंत्र को क्षति तो वैसी हरकतों से पहुंचती है, जैसी हरकत के कारण 12 सांसदों को निलंबित किया गया। आखिर जब निलंबित सांसदों की गलती साबित हो चुकी है तो फिर उस पर खेद जताकर आगे बढ़ने में क्या हर्ज है? यदि निलंबित सांसदों का समर्थन कर रहे विपक्षी दल यह संकेत देने की कोशिश कर रहे हैं कि उनके साथ अन्याय हो रहा है तो इसे कोई नहीं ग्रहण करने वाला। जनता यह अच्छे से जान रही है कि सांसदों को उनकी किन हरकतों के कारण निलंबित किया गया है? विपक्ष को जितनी जल्दी यह समझ आए, उतना ही अच्छा कि वह सांसदों के निलंबन को तूल देकर अपना ही नुकसान कर रहा है। वह यही प्रकट कर रहा है कि संसद में बहस करने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं।