पहले भी विवादों में रहे कांग्रेस के नेता सुखपाल खैहरा ने जिस तरह यह कहा कि उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग पंजाब पर कब्जा करना चाहते हैं, वह विभाजनकारी राजनीति के अलावा और कुछ नहीं। यूपी-बिहार के लोग तो पंजाब की समृद्धि में सहायक बन रहे हैं, लेकिन यह बात विभाजनकारी मानसिकता वाले लोग नहीं समझ सकते।

आमतौर पर इस तरह की विभाजनकारी और वैमनस्य पैदा करने वाली राजनीति छोटे एवं क्षेत्रीय दल करते रहे हैं। इस तरह की राजनीति देश के कई हिस्सों में समय-समय पर देखने को मिली है। ऐसी राजनीति करने वालों को सफलता नहीं मिली और मजबूरी में उन्हें अपना रवैया बदलना पड़ा। इसका उदाहरण है शिवसेना।

एक समय महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने भी दूसरे राज्यों के लोगों के खिलाफ नफरत पैदा करने की राजनीति की, लेकिन वह बुरी तरह नाकाम रही। यह आश्चर्यजनक है कि अब कांग्रेस के नेता भी क्षेत्रीय दलों जैसी भाषा बोलने लगे हैं। इस तरह की भाषा यही बताती है कि किस तरह कांग्रेस का वैचारिक रूप से भटकाव बढ़ता चला जा रहा है। निःसंदेह बात केवल संगरूर से चुनाव लड़ रहे कांग्रेस प्रत्याशी सुखपाल खैहरा की ही नहीं है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कुछ समय पहले कर्नाटक के कांग्रेस नेताओं ने किस तरह उत्तर-दक्षिण के बीच खाई पैदा करने की कोशिश की थी। पहले यह काम तमिलनाडु के क्षेत्रीय दलों के नेता किया करते थे, लेकिन ऐसा लगता है कि कांग्रेस को भी उनकी राजनीति रास आने लगी है।

पिछले कुछ समय से राहुल गांधी जिस तरह जाति जनगणना पर जोर देने में लगे हुए हैं और जगह-जगह जाकर यह पूछ रहे हैं कि अमुक-अमुक संस्थाओं एवं पदों में किस जाति के कितने लोग हैं, वह भी एक तरह की विभाजनकारी राजनीति है। जाति जनगणना की मांग करके राहुल गांधी विभिन्न जातियों के बीच की खाई चौड़ी करने का ही काम कर रहे हैं। वह केवल यहीं तक सीमित नहीं हैं, बल्कि अमीरों को खलनायक करार देकर उन्हें गरीबों का शत्रु साबित करने में लगे हुए हैं। वह यह बुनियादी बात समझने को तैयार नहीं कि अमीरों को गाली देकर और उन्हें लांछित करके वह उद्यमशीलता पर प्रहार ही कर रहे हैं।

राहुल गांधी संपत्ति का सर्वे करने की जो बात कर रहे हैं, उसके पीछे भी अमीरों और गरीबों के बीच विभाजन पैदा करना और उन्हें एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करना है। कांग्रेस ने यही काम सेक्युलरिज्म के नाम पर अल्पसंख्यकवाद को पोषित करके किया था। गरीबों के हित की बात करना अच्छी बात है, लेकिन ऐसा करते हुए कारोबारियों को उनका शोषक बताना वह वामपंथी विचार है, जो हर जगह विनाशकारी ही साबित हुआ है। ऐसा लगता है कि वामपंथियों की संगत में आकर कांग्रेस यह देखने-समझने में नाकाम है कि देश में वाम दलों की कैसी दुर्दशा हुई।