दून में सार्वजनिक स्थल को गंदा करने पर प्रदेश का पहला मुकदमा दर्ज हो गया है, लेकिन मसला कानून से अधिक आम नागरिक को दायित्व बोध कराने का भी है।

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स्वच्छता को लेकर निकायों की सजगता और सक्रियता पर हमेशा सवाल उठते रहे हैं, लेकिन पिछले दिनों राजधानी देहरादून में नगर निगम ने सार्वजनिक स्थल पर गंदगी फैलाने के आरोप में एक होटल के तीन कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया। प्रदेश में अपनी तरह का यह पहला मुकदमा है। पुलिस ने तीनों कर्मचारियों को गिरफ्तार किया, हालांकि बाद में उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया। दरअसल, वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्ता संभालने के साथ ही स्वच्छता की मुहिम शुरू की और बीते साढ़े तीन साल से यह अभियान जोर-शोर से चलाया जा रहा है। उत्तराखंड भी इससे अलग नहीं, समय-समय पर रैलियों के आयोजन के साथ ही जागरूकता के लिए अन्य अभियान भी चलाए जाते हैं। प्रदेश सरकार भी इसमें सक्रिय सहयोग देती रही है। बावजूद इसके स्वच्छता की दिशा में हम कितना आगे बढ़ पाए, अभी इसका आकलन शेष है। यह अच्छा है कि प्रदेश सरकार ने सार्वजनिक स्थलों पर गंदगी फैलाने को लेकर कानून बना दिया है। लेकिन सवाल इस कानून के अनुपालन का है।

देश और प्रदेश में कानूनों की कमी नहीं है, बावजूद इसके कितने लोग अनुपालन कर रहे हैं। सार्वजनिक स्थल पर धूमपान रोकने के लिए कानून बने एक अरसा हो गया, यदा-कदा होने वाली कार्रवाई के बाद शायद ही कुछ सुनने को मिला हो। हकीकत यह है कि सार्वजनिक स्थलों की स्वच्छता कानून से भी ज्यादा दायित्व बोध से जुड़ा है। जब तक आम नागरिक को इसका अहसास नहीं कराया जाएगा, तब तक इस दिशा में ज्यादा उम्मीद नहीं बांधी जा सकती। जितने सजग हम अपने घर की साफ-सफाई को लेकर हैं, उतने सार्वजनिक स्थलों के मामले में नहीं। दूसरी ओर भले ही दून नगर निगम ने प्रदेश का पहला मुकदमा दर्ज करा दिया हो, लेकिन इसके बावजूद निकायों पर उठने वाले सवाल कम नहीं हो जाते। यह सही है कि निकायों के पास मानवीय संसाधनों के साथ ही आर्थिक संसाधनों का अभाव है, लेकिन क्या उपलब्ध संसाधनों का सदुपयोग किया जा रहा है। बात चाहे डंपिंग जोन की हो या सड़क और गलियों की सफाई की, यह सवाल अनुत्तरित बना हुआ है। सच तो यह है स्वच्छता का अभियान किसी दिन विशेष के दिन कैमरे की चकाचौंध के बीच फोटो खिंचाने के लिए नहीं, बल्कि एक सतत प्रक्रिया के तौर पर होना चाहिए। नागरिकों को भी समझना होगा कि संविधान ने यदि अधिकारों को आवाज दी है तो दायित्वों का भी निर्धारण किया है। बात कर्तव्य की भी होनी चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड ]