सफलता की नित नई उड़ान भर रहे इसरो यानी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की ओर से संचार उपग्रह जीसैट-7 ए का सफल प्रक्षेपण इसलिए विशेष उल्लेखनीय है, क्योंकि यह संचार सेवाओं को बल देने के साथ ही वायु सेना की क्षमता बढ़ाने में भी मददगार होगा। यह ड्रोन आधारित अभियानों को भी मजबूती प्रदान करेगा। इसके चलते भारतीय वायु सेना की ताकत कई गुना बढ़ने का अनुमान है। दरअसल इसीलिए इसे सैन्य उपग्रह की भी संज्ञा दी जा रही है। श्रीहरिकोटा से अंतरिक्ष भेजे गए 2250 किलोग्राम वजनी इस उपग्रह का सफल प्रक्षेपण बीते 35 दिनों में तीसरा कामयाब अभियान है। इसके पहले इसरो ने कहीं अधिक वजनी उपग्रह को प्रक्षेपित किया था और उसके पहले एक भारतीय उपग्रह के साथ आठ अन्य देशों के करीब 30 उपग्रह भी प्रक्षेपित किए थे। सफलता की ऐसी गाथा अपने आप में एक मिसाल है।

यह लगभग तय है कि आने वाले समय में भी इस तरह की और मिसाल कायम होने वाली है, क्योंकि अगले साल इसरो की ओर से 32 रॉकेट अथवा उपग्रह अंतरिक्ष में भेजे जाने हैैं। इनमें सबसे महत्वाकांक्षी चंद्रयान-2 भी शामिल है। इसरो ने हाल के वर्षों में जैसी करिश्माई सफलताएं हासिल की हैैं उन्हें देखते हुए इसके प्रति सुनिश्चित हुआ जा सकता है कि वह आगे भी देश को आगे ले जाने के साथ दुनिया में अपना नाम कमाने का काम करता रहेगा। इसरो ने दुनिया भर में जैसी प्रतिष्ठा अर्जित कर ली है और उसमें जिस गति से वृद्धि हो रही है वह भारतीयों के लिए गर्व का विषय है, लेकिन गर्व के इन क्षणों में इस पर विचार करना समय की मांग है कि आखिर जिस तरह इसरो उम्मीदों पर खरा उतरने के साथ देश की प्रगति में सहायक बन रहा है वैसे ही अन्य वैज्ञानिक एवं तकनीकी संस्थान क्यों नहीं बन पा रहे हैैं?

हालांकि इसरो देश की संचार और सैन्य क्षमता बढ़ाने के साथ अन्य अनेक आवश्यकताओं की पूर्ति कर रहा है, लेकिन यह भी स्पष्ट है कि अंतरिक्ष तकनीक सब कुछ नहीं कर सकती। वैसे तो देश के सभी वैज्ञानिक एवं तकनीकी संस्थानों को इसरो से प्रेरणा लेनी चाहिए, लेकिन सबसे अधिक अपेक्षा उन संगठनों से है जिन पर सैन्य उपकरण और साथ ही गैर सैन्य उपकरण बनाने की जिम्मेदारी है।

यह तकनीक का युग है और इसमें भारतीय संस्थानों को वैसी ही छाप छोड़नी होगी जैसी इसरो छोड़ रहा है। इसरो की सफलताएं औरों के लिए सीख बननी चाहिए। एक बारगी मिसाइल निर्माण के मामले में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन की सफलताओं पर संतोष जताया जा सकता है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि अन्य संगठन अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पा रहे हैैं। हल्का लड़ाकू विमान तेजस वायु सेना का हिस्सा बन गया, लेकिन इसके निर्माण में जरूरत से ज्यादा समय लगा। भारत को राइफल जैसे हथियार भी बाहर से आयात करने पड़ते हैैं। इसी तरह अन्य कई साधारण से सैन्य साजो-सामान के लिए भी हम कुल मिलाकर दूसरे देशों पर निर्भर हैैं। तथ्य यह भी है कि भारत को तमाम भारी मशीनें और अन्य अनेक आधुनिक उपकरण भी आयात ही करने पड़ते हैैं।