किसानों की मुसीबत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेश में औसतन रोजाना कम से कम एक किसान आत्महत्या कर रहा है।
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पंजाब में किसानों ने एक बार फिर से संघर्ष का रास्ता अख्तियार कर लिया है। मुख्यमंत्री के गृह जिले पटियाला में सात जत्थेबंदियों के किसान तीन दिन से धरने पर बैठे हुए हैं। किसानों का आरोप है कि कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों के दौरान जो वादा किया था सत्ता में आने के बाद अब उसे पूरा नहीं कर रही है। ऐसा नहीं है कि किसान कांग्रेस सरकार में ही संघर्ष के रास्ते पर उतरे हैं। इससे पहले शिअद-भाजपा सरकार के समय भी किसानों ने बठिंडा में करीब दो माह तक धरना लगाया था। तब नरमे की लाखों एकड़ फसल सफेद मक्खी के हमले से बर्बाद हो गई थी और सदमे से काफी संख्या में किसानों ने आत्महत्या कर ली थी। तब भी सरकार ने वादा किया था और मुआवजा भी दिया था लेकिन किसानों की समस्या को देखते हुए यह नाकाफी साबित हुआ था। प्रदेश में बीती मार्च में कांग्रेस सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री की ओर से किसानों की कर्ज माफी की घोषणा की गई थी। मंत्रिमंडल की बैठक में कुछ दिन पहले इसे मंजूरी भी दे दी गई लेकिन अब तक अधिसूचना नहीं जारी की गई है। किसानों की मुसीबत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेश में औसतन रोजाना कम से कम एक किसान आत्महत्या कर रहा है। रविवार को भी संगरूर व फतेहगढ़ साहिब में दो किसानों ने आत्महत्या कर ली। शनिवार को पटियाला में किसानों के धरने के दौरान एक किसान की हार्ट अटैक से मौत हो गई। पंजाब के किसान हर साल संघर्ष करते हैं। कभी मंडियों में धान व गेहूं की सुचारू रूप से खरीद न होने के कारण उन्हें मजबूर होकर सड़क पर उतरना पड़ता है तो कभी फसल खराब होने पर मुआवजे को लेकर। देश के खाद्यान्न भंडार को भरने में प्रदेश के किसानों का अहम योगदान है। धान हो या गेहूं, किसान विषम परिस्थितियों में फसल की पैदावार कम नहीं होने देते हैं। किसानों की समस्या पर केंद्र सरकार को भी ध्यान देना चाहिए। प्रदेश सरकार की जहां तक बात है तो उसे किसानों की समस्या का समाधान यथाशीघ्र करना होगा क्योंकि रोजाना किसान आत्महत्या करे यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। किसानों को भी धैर्य से काम लेते हुए यह समझना होगा कि आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं है।

[ स्थानीय संपादकीय: पंजाब ]