अवैध खनन पर सख्ती जरूरी
विडंबना यह है कि राज्य में खनन माफिया सक्रिय है, जिसे पुलिस और प्रशासन का सरंक्षण प्राप्त है।
जम्मू-कश्मीर में बहने वाली नदियों और बरसाती नालों से बजरी और रेत के खनन पर अदालत की रोक के बावजूद इसका धड़ल्ले से दोहन चिंताजनक है। विडंबना यह है कि राज्य में खनन माफिया सक्रिय है, जिसे पुलिस और प्रशासन का सरंक्षण प्राप्त है। इससे यह धंधा काफी फल फूल रहा है। तवी नदी, दरिया चिनाब, झज्जर नाले से इमारतों के निर्माण में इस्तेमाल होने वाली सामग्री निकालने पर रोक नहीं लग पा रही है। पुलिस और प्रशासन की मिलीभगत के कारण आम लोग भी माफिया के खिलाफ खुल कर सामने नहीं आते। यह दीगर बात है कि खनन माफिया बजरी, रेत की सप्लाई के लिए चोर रास्ते को अपना रहा है। यहीं कारण है कि अब शहरों के रास्ते से दिन के समय बिल्डिंग मैटीरियल ले जा रहे वाहन नहीं दिखते। यह काम रात के अंधेरे में हो रहा है। हालांकि, पुलिस को इसकी जानकारी होती है, फिर भी वह मूकदर्शक बन रहती है। इसके लिए लोगों को भी आगे आना होगा। जैसे कि गत माह बसोहली के गांव माशका में अवैध खनन माफिया से जुड़े लोगों को स्थानीय लोगों ने वहां से खदेड़ दिया। यहां तक कि खनन के दौरान निकाली गई रेत, बजरी और पत्थर को भी अपने साथ नहीं ले जाने दिया। लोगों को भी अब पर्यावरण के प्रति चेतना आ रही है। अगर यहीं हाल रहा तो दरिया किनारे बसे क्षेत्रों में बुरा असर पड़ सकता है। हद तो यह है कि हर साल बरसात में चिनाब दरिया का पानी उपजाऊ जमीन को काट कर रिहायशी इलाके तक पहुंच जाता है। इसमें किसानों की सैकड़ों एकड़ जमीन दरिया में समा चुकी है। कई बार बाढ़ की स्थिति में कई इलाके कस्बे और शहर से कट जाते हैं। खनन के कारण दरिया का रुख रिहायशी क्षेत्रों की ओर हो रहा है। खनन से नदी-नाले गहरे हो जाते हैं और दरिया भी अपना रुख गहरे पानी की ओर कर लेते हैं, जिसका नुकसान किसानों को झेलना पड़ रहा। खनन पर कोर्ट की रोक के कारण रेत, बजरी और पत्थरों के दाम दोगुने हो गए हैं। अदालत ने सरकार की निर्माणाधीन परियोजनाओं में इस्तेमाल होने वाली रेत, बजरी और कंकर के वास्ते खनन के लिए छूट दी है, लेकिन इसकी आड़ में अवैध खनन माफिया अपना पैर पसार रहा है। सरकार को इस पर सख्ती बरतने की जरूरत है।
[ स्थानीय संपादकीय: जम्मू-कश्मीर ]