राज्य सरकार ने निजी अस्पतालों द्वारा मरीजों के इलाज पर लिए जानेवाले शुल्कों की जानकारी परिजनों को अनिवार्य रूप से देने के प्रावधान को सख्ती से लागू करने का आदेश दिया है। निजी अस्पतालों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए यह सही और प्रासंगिक कदम माना जा सकता है। लेकिन इसका हश्र वैसा नहीं होना चाहिए जैसा सरकार के कई अन्य निर्देशों का होता है। स्वास्थ्य सचिव ने अस्पतालों को अपने पूछताछ केंद्रों के पास नोटिस बोर्ड लगाकर भी सभी सेवा शुल्कों सहित अन्य विवरणी का उल्लेख करने को कहा है। इस विवरणी में डॉक्टरों के नाम, योग्यता, मेडिकल काउंसिल रजिस्ट्रेशन नंबर भी शामिल हैं। उन्होंने इसे सख्ती से लागू करने का निर्देश सभी सिविल सर्जनों को दिया है। लेकिन इस निर्देश का कितना अनुपालन हो रहा है, यह देखना भी जरूरी है। सबसे बड़ी बात यह कि यह प्रावधान तो उस समय से ही लागू हो जाना चाहिए था, जिस समय से राज्य में झारखंड क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट (रजिस्टेशन एंड रेगुलेशन) रूल, 2013 लागू हुआ। लेकिन दुर्भाग्यवश यह प्रावधान कागज में ही सिमटा रहा। क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट की धारा 12 में ही इस संबंध में स्पष्ट प्रावधान किया गया है।

इसके बावजूद अभी तक इसका सख्ती से अनुपालन नहीं कराया गया। इन प्रावधानों को लेकर लोगों में जागरुकता भी नहीं है। इस कारण परिजन सामान्य तौर पर ये सूचनाएं अस्पताल से नहीं मांगते। इस नियम के अनुपालन कराने की मुख्य जिम्मेदारी सिविल सर्जनों की है। लेकिन किसी सिविल सर्जन ने इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया। कभी-कभी उनके द्वारा अस्पतालों को एक पत्र भेजकर एक्ट के अनुपालन का निर्देश भर दिया जाता रहा। उस निर्देश का अनुपालन हो रहा है या नहीं यह कभी देखा नहीं गया। दूसरी तरफ, निजी अस्पतालों द्वारा इस नियम के इन प्रावधानों के अलावा अन्य प्रावधानों के अनुपालन में लगातार लापरवाही बरती जाती रही। आए दिन यह बात सामने आती रही है कि अस्पताल मरीजों के परिजनों से मनमाने शुल्क वसूल कर भी पूरी जानकारी नहीं देते। डॉक्टरों के बारे में पूरी विवरणी भी नोटिस बोर्ड पर नहीं दी जाती। स्वास्थ्य सचिव ने इन प्रावधानों को सख्ती से लागू कराने की पहल की है। लेकिन उन्हें नियमित रूप से सिविल सर्जनों से रिपोर्ट भी मंगानी चाहिए। जो सिविल सर्जन इसमें कोताही बरतते हैं उनके विरुद्ध भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय: झारखंड ]