जरूरत है अतिवादी संगठनों के नेताओं पर कड़ी कार्रवाई की ताकि नियम-कानून के साथ भविष्य में कोई खिलवाड़ नहीं कर सके। ग्रामीणों में जागरूकता लाने के लिए भी ठोस प्रयास करना होगा।

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पिछले कुछ महीनों से रांची और इसके आसपास के जिलों में कानून व्यवस्था को धता बता कुछ अतिवादी संगठन भोले-भाले ग्रामीणों को बरगला कर लगातार पत्थलगड़ी कर रहे हैं। स्थानीय पुलिस प्रशासन ने सीआरपीएफ के जवानों के साथ मिलकर इसे रोकने का प्रयास भी किया। लेकिन संगठनों की लामबंदी इतनी तगड़ी थी कि लगातार दो बार अधिकारियों के साथ दर्जनों की संख्या में मौजूद पुलिस व सीआरपीएफ जवानों को घंटों बंधक बना लिया। देश व राज्य की संप्रभुता व अखंडता के लिए यह सही नहीं है, जहां सरकार का कोई कायदा-कानून मायने नहीं रखता। सरकार ग्राम सभा व पंचायतों के सशक्तीकरण के लिए कई कार्यक्रम चला रही है।

पंचायतों को कई अधिकार दिए गए हैं। लेकिन कुछ संगठन ग्राम सभा के अधिकार के नाम पर इन क्षेत्रों में अपना राज कायम करना चाहते हैं, जिससे अफीम की खेती, नक्सलवाद, धर्मांतरण समेत कई अनैतिक कार्य को अंजाम दिया जा सके। यह एक बड़े स्तर पर खतरे की घंटी का संकेत है। यहां इस तरह की व्यवस्था तैयार की जा रही है कि बिना ग्रामसभा की अनुमति के किसी भी बाहरी व्यक्ति का गांव में कोई काम करना तो दूर घुसना तक मना है। सरकार को खुलेआम दी जा रही इस तरह की चुनौती काफी चिंताजनक है। सरकार के स्तर पर इसे रोकने के लिए प्रयास तो किए जा रहे हैं, लेकिन ठोस कार्रवाई नहीं दिख रही। इस वजह से ऐसे अतिवादी संगठनों का मनोबल लगातार बढ़ता जा रहा है। यही कारण है कि हर सप्ताह नए-नए गांव में डंके की चोट पर पत्थलगड़ी कर सरकार को खुली चुनौती दी जा रही है।

जरूरत है ऐसे अतिवादी संगठनों के नेताओं पर कड़ी कार्रवाई की ताकि नियम-कानून के साथ भविष्य में भी कोई खिलवाड़ नहीं कर सके। इसके साथ ही ग्रामीणों को और अधिक जागरूक बनाया जाए, उन्हें यह बताया जाए कि सरकार की पहुंच यदि उन तक नहीं होगी तो सरकारी योजनाओं का लाभ उन्हें कैसे मिल पाएगा। अतिवादी संगठनों के झांसे में आने से सिर्फ उन्हीं का नुकसान है। कारण, बिना सरकार की मदद के सड़कें, स्कूल, अस्पताल, रोजगार, स्वच्छ पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाएं उन्हें कैसे मिल पाएंगी। विकास से वे कोसों दूर चले जाएंगे। इसलिए जरूरी है कि सरकार ऐसे कृत्य करने वाले संगठनों पर कड़ी कार्रवाई के साथ ग्रामीणों की काउंसिलिंग कर उनमें जागरूकता के लिए भी ठोस प्रयास करे। नहीं तो यह पत्थलगड़ी आने वाले समय में नासूर बन जाएगा।

[ स्थानीय संपादकीय: झारखंड ]