प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देहरादून में उत्तराखंड इन्वेस्टर्स समिट के अवसर पर भारत को निवेश के लिहाज से उपयुक्त बताते हुए यह सही कहा कि देश दुनिया के विकास का वाहक बन सकता है, लेकिन यह भी एक यथार्थ है कि निवेशकों का पसंदीदा ठिकाना बनने के लिए अभी बहुत कुछ करना शेष है। इससे इन्कार नहीं कि मोदी सरकार ने बीते चार वर्षों में निवेशकों को आकर्षित करने के लिए तमाम कदम उठाए हैं और इनमें जीएसटी सबसे अहम है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं कि जा सकती कि केंद्र सरकार के मुकाबले राज्य सरकारें अपेक्षित कदम नहीं उठा सकी हैं। इस मामले में उत्तर भारत की राज्य सरकारें कहीं अधिक सुस्त हैं।

राज्य सरकारों को यह समझना होगा कि निवेशक सम्मेलनों के मौके पर कारोबारियों को उत्साहित करने के लिए बड़ी-बड़ी घोषणाएं करना अलग बात है और उनके अनुरूप कदम उठाना और निवेशकों को भरोसे में लेना अलग बात। हमारे राजनेता जब तक उद्योग-धंधों के विकास के लिए आवश्यक प्रतिबद्धता का प्रदर्शन नहीं करते तब तक बात बनने वाली नहीं है। यह किसी से छिपा नहीं कि जब उद्यमियों से किए गए वायदे पूरे करने का अवसर आता है तब आमतौर पर पीछे हट जाया जाता है। राजनेता दावे चाहे जो करें, सच यह है कि वे वोट बैंक को सर्वाधिक प्राथमिकता देते हैं।

विडंबना यह है कि देश में एक ऐसा वर्ग तैयार हो गया है जो उद्योग-धंधों के विकास को गरीबों के हितों के खिलाफ बताता है। इस वर्ग के कुछ लोग तो ऐसे हैं जो उद्यमियों को खलनायक के तौर पर चित्रित करने में भी पीछे नहीं रहते। दरअसल इसी कारण उद्यमी अक्सर अपने कदम पीछे खींच लेते हैं या फिर वे अपने उद्योग-धंधे को विस्तार देने के बजाय अपनी लागत निकालने को प्राथमिकता देते हैं। कभी वे अनुकूल वातावरण के अभाव में दुविधा से ग्रस्त हो जाते हैं तो कभी राज्यों के ढुलमुल रवैये के कारण।

आज जब राज्यों के पास उद्योग-धंधों के विकास के अलावा और कोई राह नहीं तब यह ठीक नहीं कि वे निवेश के लिए अनुकूल माहौल का निर्माण करने के मामले में तत्पर नहीं नजर आते। अच्छा होगा कि राज्य सरकारें और खासकर उत्तर भारत के राज्यों की सरकारें कारोबार को सुगम बनाने के लिए वैसी ही लगन से काम करें जैसी लगन का परिचय मोदी सरकार ने दिया। यदि राज्य सरकारें यह चाहती हैं कि कारोबार जगत के लोग उद्योग-धंधों की स्थापना के साथ ही अपने सामाजिक दायित्वों के निर्वहन के प्रति भी सजगता दिखाएं तो उन्हें भी कारोबार को बढ़ावा देने और जरूरत पड़ने पर उद्यमियों के साथ खड़े होने में संकोच नहीं करना चाहिए। वे यह बात गांठ बांध लें तो बेहतर कि गरीबों का भला तभी होगा जब उद्योग-धंधों का तेजी से विकास होगा।

केवल इतना ही पर्याप्त नहीं कि हजारों करोड़ों रुपये के निवेश प्रस्तावों को स्वीकृति दे दी जाए। इन प्रस्तावों को जमीन पर उतारने का भी काम किया जाना चाहिए। चूंकि चुनावी माहौल में नेताओं की प्राथमिकता बदल जाती है इसलिए मोदी सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि राज्य सरकारें उद्योग-धंधों के विकास के प्रति समर्पण भाव दिखाएं।