हवाई यात्रा शुरू करने की केंद्र सरकार की तैयारियों को लेकर राज्य सरकारों ने जैसा रवैया अपना लिया है उससे लगता नहीं कि लोग हवाई सेवा का लाभ उठा पाएंगे। जहां महाराष्ट्र सरकार 25 मई के बजाय कुछ दिन बाद हवाई सेवा शुरू करने की बात कह रही है वहीं अन्य राज्य सरकारें यह कह रही हैं कि वे विमान यात्रियों को क्वारंटाइन में रहना अनिवार्य बनाएंगी। इस मामले में भिन्न-भिन्न राज्य अलग-अलग नियम बनाने की तैयारी कर रहे हैं। कोई विमान यात्रियों को एक सप्ताह क्वारंटाइन में रखना चाह रहा है तो कोई दो सप्ताह। कुछ अपने और दूसरे प्रांतों के यात्रियों में भेद करने का उपक्रम कर रहा है।

आखिर काम-धंधे के सिलसिले में एक से दूसरे राज्य जाने वाले लोग एक या दो सप्ताह क्वारंटाइन में जाना क्यों पसंद करेंगे? अगर वे क्वारंटाइन होंगे तो फिर उनके काम का क्या होगा? आश्चर्य नहीं कि वे क्वारंटाइन में जाने के बजाय हवाई यात्रा स्थगित करना पसंद करें। मुश्किल केवल यह नहीं कि राज्य सरकारें घरेलू विमान सेवा शुरू करने में ही असहयोग का परिचय दे रही हैं। वे एक जून से शुरू होने वाली सीमित रेल सेवा को लेकर भी आनाकानी करती दिख रही हैं। राज्यों के ऐसे रवैये को देखकर यह कहना कठिन है कि उनकी दिलचस्पी आवाजाही को प्रोत्साहित करके कारोबारी गतिविधियों को आगे बढ़ाने में है।

राज्य न तो इससे अनजान हो सकते हैं कि आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों को बल देने के लिए आवाजाही आवश्यक है और न ही इससे कि यदि काम-धंधा गति नहीं पकड़ता तो इससे मुश्किलें और अधिक बढ़ने वाली हैं। समझना कठिन है कि आरोग्य सेतु एप से लैस और सेहत की प्रारंभिक जांच से गुजरने वाले यात्रियों की आवाजाही पर अड़ंगे क्यों लगाए जा रहे हैं? यह तो समझ आता है कि राज्य सरकारें विमान और रेल यात्रियों के आगमन पर नए सिरे से उनकी थर्मल स्कैनिंग करें, लेकिन इसका कोई मतलब नहीं कि वे हर यात्री को क्वारंटाइन में भेजने की जरूरत जताएं। ऐसा करना तो एक तरह से आवाजाही को नियंत्रित करना ही है।

विमान और रेल सेवा को अनुमति देने में आनाकानी कर रहीं राज्य सरकारें अपने कमजोर आत्मविश्वास को ही रेखांकित कर रही हैं। हैरानी नहीं कि इसकी एक बड़ी वजह उनका दुर्बल स्वास्थ्य ढांचा हो। ऐसा लगता है कि बीते दो माह में उन्होंने अपने स्वास्थ्य ढांचे को सक्षम बनाने के लिए वैसी कोशिश नहीं की जैसी अपेक्षित भी थी और आवश्यक भी। नि:संदेह कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए सतर्कता बरतना समय की मांग है, लेकिन उसके नाम पर आवाजाही को हतोत्साहित करना तो कुलमिलाकर मुसीबतें बढ़ाने वाला काम ही अधिक है।